पटना, ८ मई। वर्ष १९७४ में, लोकनायक जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए ऐतिहासिक बिहार आंदोलन में नुक्कड़ पर उतरे कवियों में अग्र-पांक्तेय रहे व्यंग्य के यशस्वी कवि पद्मश्री डा रवींद्र राजहंस नहीं रहे। शनिवार के सूर्योदय के बहुत पूर्व ही उनका जीवन-सूर्य अस्त हो गया। उन्होंने ८१ वर्ष की आयु में दिल्ली स्थित अपने भा प्र से अधिकारी पुत्र ज्योति कलश के आवास पर अपनी अंतिम सांसें लीं। वे कुछ समय से अस्वस्थ थे तथा दिल्ली में रहकर अपना उपचार करा रहे थे। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर व्याप्त हो गई है।
अपने शोकोदगार में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा है कि राजहंस जी व्यंग्य-साहित्य के विख्यात कवि थे, जिनकी रचनाएँ पत्थर-हृदय वाले लोगों पर ‘छेनी’ चलाती है। कोमल मन को गुदगुदाती है तो चिकोटी भी काटती है। मर्म पर सीधे आघात भी करती है और दिलों में चूभती भी है। उनका व्यंग्य, आज के मंचों पर हास्य कवि-सम्मेलनों के नाम पर, मसखरों द्वारा की जा रही मसखरी नहीं,बल्कि समाज की विद्रुपताओं पर गंभीर साहित्यिक हस्तक्षेप करती हैं। उनकी प्रसिद्ध रचना ‘ओ मेरे शतायु पिता’ एक ओर जहां आज के कलियगी पुत्रों की मनोवृति को दर्शाती है, वहीं बुजुर्गों की दारुण दशा को भी रेखांकित करती है। उनकी कविता ‘जला आदमी : शहर में कहाँ मिलता है भला आदमी’ समाज के हर वर्ग में व्याप्त भ्रष्टाचार और पाखंड पर तीखा व्यंग्य है। ‘अंतःकरण का औपरेशन’ उनकी व्यंग्य की लोकप्रिय कविताओं में से एक है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से भी उनका गहरा संबंध था। वे सम्मेलन किकार्य समिति के सदस्य भी रह चुके थे। वर्ष २०१६ के ४ मार्च को, उनके ७७वे जन्मदिवस पर एक भव्य आयोजन कर सम्मेलन ने उनका अभिनंदान किया था। सम्मेलन के ३९वें माहाधिवेशन में उन्हें ‘कलक्टर सिंह केसरी सम्मान से अलंकृत किया गया था। उनके निधन से साहित्य जगत , विशेषकर परिनिष्ठ व्यंग्य-साहित्य की अपुरनीय क्षति पहुँची है। वे हिन्दी व्यंग्य में बिहार के गौरव किरीट थे।
राजहंस जी पटना के कौलेज औफ़ कौमर्स में अंग्रेज़ी के प्राध्यापक थे किंतु उन्होंने जिस प्रकार हिन्दी साहित्य की सेवा की वह स्तुत्य है। उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में भी योगदान दिया। उनकी पुस्तक ‘सनराइज़ इन स्लम’, जो फुटपाथ और झोपड़ियों में जीने वाले बच्चों के जीवन पर लिखी एक अत्यंत मार्मिक कथा-पुस्तक है, का लोकार्पण २० मार्च २०१४ को भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने किया था।
स्मरणीय है कि डा राजहंस, हिन्दी के महान साहित्यकार और शिक्षाविद प्रो मुरलीधर श्रीवास्तव ‘शेखर’ के पुत्र और लोकप्रिय साहित्यकार,प्राध्यापक और कुलपति पद्मश्री डा शैलेंद्रनाथ श्रीवास्तव के अनुज थे। आज तीसरे पहर दिल्ली के लोदी रोड स्थित शमशान घाट पर उनके पार्थिव शरीर का अग्नि-संस्कार संपन्न हुआ। उनके ज्येष्ठपुत्र ज्योति कलश ने मुखाग्नि दी। डा राजहंस अपने पीछे अपनी विदुषी भार्या प्रो आरती राजहंस, पुत्र ज्योति कलश और अमृत कलश (भा आ से), पुत्री रिमझिम वर्षा साहित एक समृद्ध परिवार को विलखता छोड़ गए हैं।
शोक प्रकट करने वालों में, वरिष्ठ साहित्यकार अमरेन्द्र नारायण, डा शेफालिका वर्मा, डा सरश अवस्थी, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’, डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, पारिजात सौरभ, डा भूपेन्द्र कलसी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, कुमार अनुपम, आरपी घायल, डा किरण घई सिन्हा, डा नीलम श्रीवास्तव, ‘संझा बाती’ के संपादक हेमंत कुमार, डा पुष्पा जमुआर, प्रवीर पंकज, पूनम आनंद, डा कुमार अरुणोदय, प्रो सुशील झा, डा शालिनी पाण्डेय, डा सागरिका राय, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, प्रेमलता सिंह, डा आरती कुमारी, जूही समर्पिता, कमल नयन श्रीवास्तव, डा जेबी पाण्डेय, अंकेश कुमार, डा दिनेश दिवाकर, चितरंजन लाल भारती, अम्बरीष कांत आदि के नाम सम्मिलित हैं।