पटना , २० मई। छायावाद-युग के प्रमुख स्तंभ और प्रकृति के सुकुमार कवि के रूप में सुख्यात हिन्दी के महान कवि पं सुमित्रानंदन पंत, प्रकृति के दिव्य सौंदर्य के चितेरे और मानवतावादी कवि थे। उनकी रचनाओं के विराट विस्तार में प्रकृति का चित्ताकर्षक चित्रण तो है हीं, समाज की पीड़ा और चिंता के साथ एक मानवतावादी समाजवाद भी है, जो प्रगतिवाद के रास्ते से अध्यात्म-वाद पर संपन्न और संपूर्ण होता है। यह बातें गुरुवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा ऑन लाइन आयोजित जयंती समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, पंत जी की रचना-प्रक्रिया को समझने के लिए, उनके जीवन के चार काल-खंड को अलग-अलग अध्ययन करना आवश्यक है। कवि अपने यौवन में, प्रेम और प्रकृति तथा उनके उदात्त सौंदर्य के चितेरे के रूप में दिखाई देते हैं। इसके पश्चात उन पर, साम्यवाद के जनक मार्क्स और प्रगतिवाद का प्रभाव दिखता है। फिर वे महात्मा-गाँधी से प्रभावित होकर सेवा और मानवता-वादी दृष्टिकोण के ध्वज-वाहक दिखते हैं। और, जीवन के चौथेपन में उन पर महर्षि अरविंदो का प्रभाव है, जिसमें उनकी आध्यात्मिक-चेतना उर्द्धगामी होती दिखाई देती है।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि पंत जी हिन्दी साहित्य नभ के एक ऐसे नक्षत्र हैं, जिन्होंने हिन्दी-काव्य को अप्रतिम ऊँचाई प्रदान की। उनका काव्य-संसार मनाव-मन की आकांक्षाओं का गहरा सागर है।वरिष्ठ कवयित्री डा प्रमिला मिश्र, डा मुकेश कुमार ओझा, पूनम आनंद, डा अर्चना त्रिपाठी, डा शालिनी पाण्डेय, डा ध्रुब कुमार, कुमार अनुपम, आराधना प्रसाद, हिमकर श्याम, पूनम देवा, पं सियाराम ओझा, नंदिनी प्रनय, वरुणा डोगरा शर्मा, प्रतिभा सहाय, प्रदीप कुमार दाश, रोहित कुमार, नेहाल कुमार सिंह निर्मल, वीणाश्री हेमब्रम, अमित कुमार सिंह आदि ने भी अपनी भावांजलि अर्पित की।।