पटना, २८ मई। संस्कृत साहित्य में संसार का समस्त ज्ञान ही नहीं महाविज्ञान भी समाहित ही। वैदिक काल में हमारा ज्ञान अपने सर्वोच्च उत्कर्ष पर था। हम हज़ारों वर्ष पहले जानते थे कि सूर्य अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति से पृथ्वी समेत अन्य ग्रहों को उसकी परिक्रमा करने पर विवश करता है। इसका उल्लेख सामवेद में है। हम सहस्राव्दियों पूर्व यह जानते थे कि वृहस्पति का रंग पीला, मंगल का लाल, शुक्र का नीला,बुध का हरा और शनि का काला है। शल्य चिकित्सा सहित, चिकित्सा-विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, गणित, ज्योतिष, साहित्य, दर्शन और अध्यात्म आदि विषयों में भी हम श्रेष्ठतम अवस्था में थे। ज्ञान-विज्ञान का वह समस्त कोश हमारे संस्कृत साहित्य में है। उसे जानने प्रत्येक भारतीय का अधिकार भी है और कर्तव्य भी। इस हेतु प्रत्येक व्यक्ति को संस्कृत का ज्ञान अवश्य ही होना चाहिए। यदि हम अपने ज्ञान-कोश से जुड़ जाते हैं तो हमें कभी भी भविष्य में पश्चिम की ओर नही देखना होगा।
यह बातें शुक्रवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा ऑनलाइन आयोजित दस दिवसीय संस्कृत संभाषण शिविर के सामापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष दा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि सम्मेलन के इस शिविर के द्वारा संस्कृत के विशाल-वृक्ष का अनेक लोगों में बीजारोपण किया गया है। भविष्य में यह विशाल रूप में चतुर्दिक प्रसारित होगा। उन्होंने कहा कि शिविर संचालन तथा संस्कृत पाठशाला का कार्य आगे भी जारी रहेगा। जून में उच्च शिविर आयोजित होगा।
समापन समारोह में संपन्न हुई संस्कृत संभाषण प्रतियोगिता में डा जंग बहादुर पाण्डेय को प्रथम, डा प्रतिभा सहाय को द्वितीय तथा पल्लवी विश्वास को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। डा प्रमिला मिश्र और वीणाश्री हेमब्रम को संयुक्त रूप से चतुर्थ तथा डा सुषमा तिवारी को पंचम स्थान प्राप्त हुआ।आयोजन के मुख्य अतिथि और संस्कृत के सुख्यात प्रचारक पं डा मिथिलेश झा ने कहा कि संस्कृत हिन्दी की माता है। यही कारण है कि हिन्दी जानने वाले सभी व्यक्तियों में संस्कृत का ज्ञान छुपे हुए रूप में अवश्य रहता है। यदि छोटा भी प्रयास किया जाए तो संस्कृत सरलता से सीखी जा सकती है।
शिविर के मुख्य प्रशिक्षक डा मुकेश कुमार ओझा, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा जंग बहादुर पाण्डेय, डा प्रतिभा सहाय, डा प्रमिला मिश्र, डा पल्लवी विश्वास, अमरेन्द्र ओझा, नंदिनी प्रनय, डा ध्रुब कुमार, श्रुति कर्ण, डा भारती कुमारी, डा शालिनी पाण्डेय, डा अर्चना त्रिपाठी, डा उषा रानी जायसवाल, डा सुलक्ष्मी कुमारी, वीणाश्री हेमब्रम, डा सुषमा तिवारी, डा कुंदन कुमार, डा ममता मिश्र, पूनम देवा, केतन कुमार, डा मीना कुमारी परिहार, तान्या राज, दयाल मंडल, डा उर्मिला साव कामना, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, नम्रता कुमारी,कुमार अनुपम, अर्चना सिन्हा, आरती कुमारी, इन्दु उपाध्याय, प्रणब समाजदार, पूनम आनंद, राज किशोर झा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। सभी प्रतिभागियों को प्रशिक्षण का डिजिटल प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया।