पटना, ४ जून। प्रकृति के मुग्धकारी रूप और उसकी सुरम्य सुषमा को काव्य में पिरोनेवाले कृतात्मा कवि कलक्टर सिंह ‘केसरी’ पिछली पीढ़ी के एक ऐसे कवि और विद्वान आचार्य थे, जिन्हें ‘प्रकृति-राग’ का अमर गायक माना जाता है। आधुनिक हिन्दी के काव्य-इतिहास में केसरी जी छायावाद और उत्तर-छायावाद के मिलन-बिन्दु हैं और उनकी मनोहारी काव्य में, इन दोनों ही युगों की मधुरतम झंकार सुनाई देती है। वे एक सम्मोहक कवि ही नही, एक महान शिक्षाविद, साहित्यिक और सांस्कृतिक महोत्सवों का यशस्वी संयोजक-आयोजक और हिन्दी भाषा और साहित्य के कीर्तिशेष उन्नायक भी थे। उन्होंने समस्तीपुर महाविद्यालय के संस्थापक प्राचार्य और विश्वविद्यालय सेवा आयोग के सदस्य और फिर अध्यक्ष के रूप में अपनी प्रशासकीय निपुणता का भी परिचय दिया। वे साहित्य सम्मेलन के दो बार अध्यक्ष निर्वाचित हुए। वे सच्चे अर्थों में हिन्दी साहित्य के विशाल मंदिर के दिप्तिमान ‘स्वर्ण-कलश’ थे, जिन पर बिहार को सदा गौरव रहेगा।
यह बातें शुक्रवार को, केसरी जी की ११३वीं जयंती की पूर्व संध्या पर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित एक संक्षिप्त समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि केसरी जी की कारयित्री प्रतिभा बहुमुखी थी। वे अंग्रेज़ी के प्राध्यापक थे, किंतु जिस मन-प्राण से उन्होंने हिन्दी की सेवा की, वह इतिहास शेष है। वे समस्तीपुर महाविद्यालय के संस्थापक और २० वर्षों तक प्राचार्य भी रहे। वे स्वयं में हीं एक साहित्यिक-कार्यशाला थे। उनका सान्निध्य पाकर अनेक व्यक्तियों ने साहित्य-संसार में लोकप्रियता अर्जित की।
इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा अमरनाथ प्रसाद, अमरेन्द्र झा, महेश प्रसाद, उमेश कुमार, वीरेंद्र प्रसाद तथा सुनीता कुमारी ने भी अपनी भावांजलि अर्पित की।