धीरेन्द्र वर्मा की रिपोर्ट /भारत का चुनाव आयोग कम से कम पांच प्रमुख चुनावी सुधारों पर जोर दे रहा है. इसमें पेड न्यूज़ को चुनावी अपराध बनाना, आधार नंबर को वोटर लिस्ट से जोड़ना और झूठा हलफनामा दाखिल करने की सजा को बढ़ाना (दो साल की कैद) शामिल है. चुनाव आयोग की ओर से लंबे वक्त से केंद्र सरकार से कानून में बदलाव करने की मांग की जा रही है. चुनाव आयोग का कहना है कि जो भी नया व्यक्ति वोटर आईडी कार्ड के लिए अप्लाई करे, उसके लिए आधार की जानकारी देना अनिवार्य कर दिया जाए. चुनाव आयोग का कहना है कि आधार और वोटर आईडी कार्ड कनेक्ट होने से काफी दिक्कतें खत्म होंगी, अभी वोटर लिस्ट में कई नाम बार-बार आते हैं और कई जगह आते हैं. इससे ये दिक्कत दूर हो सकती है. मार्च में संसद में सरकार से चुनाव आयोग के प्रस्ताव पर ताजा जानकारी मांगी गई थी.यूपी में 12 जुलाई से पहले होंगे पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव, 20 जून के बाद अधिसूचना .अधिकारी ने कहा कि चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर इन प्रस्तावों पर तेजी से विचार करने की अपील की है. इनमें नए मतदाताओं के लिए एक साल में कई रजिस्ट्रेशन की तारीखें भी शामिल हैं. मंत्रालय के पास ऐसे करीब 40 प्रस्ताव पेंडिंग में हैं. बता दें कि अगले साल गोवा, मणिपुर, उत्तराखंड, पंजाब और उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने हैं.चुनाव आयोग चुनावी प्रक्रिया में बड़े बदलाव के रूप में डिजिटलाइजेशन, मतदाताओं के दोहराव को खत्म करने और प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) को भी वोटिंग का अधिकार देने पर विचार कर रहा है. अधिकारी ने कहा, ‘चुनाव आयोग ने 17 मई को कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को इन सुधारों पर फिर से विचार करने के लिए एक चिट्ठी भेजी थी.’राजनीतिक नेताओं और विशेषज्ञों का तर्क है कि उल्लिखित कुछ सुधार अच्छे हैं, लेकिन चुनाव आयोग को रैलियों में अभद्र भाषा के इस्तेमाल और हेट स्पीच को रोकने के लिए भी कुछ करना चाहिए, ताकि चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे. अभी ECI ने अपनी चिट्ठी में सिर्फ पांच सुधारों पर ही फोकस किया है.पहला सुधार: यह प्रस्तावित किया गया है कि 18 साल के होने वाले मतदाता साल में सिर्फ एक बार रजिस्ट्रेशन कराने में सक्षम हो. वर्तमान में 1 जनवरी को 18 वर्ष के होने वाले युवा ही मतदाता के रूप में रजिस्ट्रेशन के पात्र हैं. अधिकारी ने कहा, ‘इससे बहुत से लोग पूरा साल खो देते हैं और वोट नहीं दे पाते. आयोग ने इसके बजाय संभावित रजिस्ट्रेशन तारीखों के रूप में 1 जनवरी, 1 अप्रैल, 1 सितंबर और 1 दिसंबर को प्रस्तावित किया है.’ इस मामले से परिचित चुनाव आयोग के अधिकारी ने कहा कि पहली बार रजिस्ट्रेशन की कई तारीखों की सिफारिश 1970 के दशक में की गई थी (जब मतदान की उम्र 21 वर्ष थी).दूसरा सुधार: चुनाव आयोग झूठे हलफनामों पर सख्त कार्रवाई चाहता है. वर्तमान में झूठी या गलत सूचना देने वाले उम्मीदवारों को छह महीने तक की कैद की सजा हो सकती है. आयोग ने इसे बढ़ाकर दो साल करने का सुझाव दिया है. पहले अधिकारी ने कहा, “वर्तमान जेल की अवधि उम्मीदवार की अयोग्यता का परिणाम नहीं है. उम्मीदवार को छह साल के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकता है.”तीसरा सुधार: चुनाव आयोग ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को लेकर पेड न्यूज को चुनाव अपराधों की सूची में शामिल करने की सिफारिश की है. मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने हाल ही में इसपर बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि आयोग ने विधि मंत्रालय को जरूरी संशोधन का सुझाव दिया है.चौथा सुधार: यह भी सुझाव दिया गया है कि प्रिंट मीडिया (समाचार पत्रों, पत्रिकाओं) में विज्ञापनों को मौन अवधि के दौरान प्रतिबंधित कर दिया जाए, क्योंकि इसमें उम्मीदवारों को प्रचार करने की अनुमति नहीं है.पांचवां सुधार: चुनाव आयोग आधार डेटा को मतदाता सूची से जोड़ना चाहता है, ताकि मतदाता पहचान पत्र के दोहराव को खत्म किया जा सके. पहले अधिकारी ने कहा, “यह यह भी सुनिश्चित करना होगा कि जब कोई व्यक्ति दूसरे राज्य में जाता है, तो उसका मतदाता पहचान पत्र दोबारा जारी न करके इसे सिर्फ ट्रांसफर किया जा सके.बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए इस तरह के सुधार जरूरी हैं. उन्होंने कहा, “फर्जी और फर्जी मतदाताओं पर अंकुश लगाने की जरूरत है. सबसे अच्छा तरीका है कि मतदाताओं को उनके आधार कार्ड से जोड़ा जाए.” सिन्हा ने कहा, “चुनाव लड़ने वाला कोई भी व्यक्ति नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारियां रखता है, लेकिन जानबूझकर गलत जानकारी देना लोकतंत्र पर धब्बा है. ऐसे प्रतिनिधि अपने संवैधानिक दायित्वों के प्रति सच्चे नहीं हो सकते. इसलिए चुनाव आयोग का यह कदम न्यायसंगत है.कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि आयोग ‘लिप सर्विस’ दे रहा. यानी सरकार के इशारे पर काम कर रहा. इसके बजाय उसे अपनी विश्वसनीयता हासिल करने पर ध्यान देना चाहिए. तिवारी ने कहा, “चुनाव आयोग ने पूरी तरह से भारतीय लोगों की विश्वसनीयता खो दिया है. इसे सरकार की एक और शाखा के रूप में देखा जाता है. इससे पहले कि वह सुधारों के बारे में बात करना शुरू करे, उसे अपनी विश्वसनीयता हासिल करने के लिए काम करना चाहिए.