धीरेन्द्र वर्मा की रिपोर्ट /संक्रमण के बीच वैक्सीन को सबसे बड़े सुरक्षा कवच के रूप में देखा जा रहा है. यही कारण है कि भारत सरकार की ओर से पूरे देश कोरोना वैक्सीनेशन को लेकर एक अभियान चलाया जा चुका है. कोरोना वैक्सीनेशन प्रोग्राम के बीच वैक्सीन की दो डोज के बीच के अंतर को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है. दरअसल ब्रिटेन की एक रिपोर्ट में कोविशील्ड वैक्सीन की दो डोज के बीच का अंतर घटाने की बात कही गई है. इस रिपोर्ट को देखने के बाद भारत का टीकाकरण विशेषज्ञ समूह कोविशील्ड की दूसरी खुराक में देरी के निर्णय की समीक्षा कर रहा है.भारत में कोरोना वैक्सीनेशन प्रोग्राम से जुड़े एक शीर्ष सरकारी विशेषज्ञ ने बताया, अन्य देशों में जांच के दौरान पाया गया है कि वैक्सीन की एक डोज कोरोनोवायरस के डेल्टा संस्करण के लिए पर्याप्त नहीं है. जांच में पाया गया है कि जिन लोगों ने कोविशील्ड की एक ही खुराक ली थी उनमें कोरोना के डेल्टा वेरिएंट के बाद वैक्सीन की प्रभावकारिता दर 33 प्रतिशत कम हो गई थी. यही कारण है कि विशेषज्ञों ने सरकार से वैक्सीन की दोनों डोज के बीच 12 सप्ताह के अंतराल को अनिवार्य बनाने के अपने निर्णय को पलटने का आग्रह किया है.इस पूरे मामले पर अब नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) वीके पॉल ने कहा, यह एक गतिशील प्रक्रिया है. विज्ञान में समय-समय पर बदलाव होते रहते हैं. कोविशील्ड को लेकर जिस तरह की रिपोर्ट दी गई है उसकी समीक्षा की जा रही है. पिछले महीने ही भारत में कोविशील्ड के दो डोज के बीच अंतर को बढ़ाकर 12 से 16 सप्ताह कर दिया गया था. विशेषज्ञों की टीम अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों के आधार पर भी अपनी राय देती है. पहले कहा गया था कि वैक्सीन की पहली डोज से ही काफी सुरक्षा मिल जाती है और दूसरी डोज में अंतर बढ़ाने से इसका प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है.