यादों के झरोखे से :–
गर्मी में ऐसे ब्याह के चल-चित्र बहुतों के मन-मस्तिष्क को अब भी तरो-ताज़ा कर देते होगे । गर्मी की छुट्टियाँ और ननिहाल की सोंधी महक का रिश्ता इतना मधुर होता है कि जिसने इसे जिया , वे स्मृतियाँ आज भी चलचित्र की तरह उसके चेहरे पर हंसी ले ही आता है । गर्मियां ही तो थीं जो बच्चों की माँ को उसके बाबुल के पास ले जातीं । हफ्ते-15 दिनों की इन छुट्टियों की प्रतीक्षा हर महिला बड़ी ललक से करती । बचपन की शरारतों और खेलने के उत्साह में गर्मी कहाँ लगती । छत पर खुले आसमान के नीचे किस्से-कहानियाँ सुनते हुए सोना और आम की डालियों से पके आम तोड़कर खाना । एक समय था जब गाँव में गर्मियों की ठंडी भोर खुले में सोनेवालों को मोटी चादर ओढ़ने को विवश कर देती । जिन्होंने उस सुबह और उस चादर का सुख उठाया है, बिजली से चलने वाला एसी उन्हें कभी संतुष्ट नहीं कर सकता । गर्मियों की शादियों के रतजगे में एक गीत खूब बजता था :- ” राजा गरमी के मारे चुनरिया भीजे हमारी । ‘ सिर ढांके हुए पसीने से लथपथ सजी – धजी बहुएं चूड़ियाँ खनकाती हुई इस गीत पर नाचतीं । यह दृश्य मेरे मन में कैद है ।
पंडित सिया राम मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार
प्रिन्ट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ।
संस्थापक संपादक
आईना न्यूज़
उत्तर प्रदेश ।
वरिष्ठ संपादक
” कंट्री इनसाइड न्यूज़ “