पटना, १४ जून। संगीत का मानव मन पर सबसे गहरा प्रभाव पड़ता है। इसकी मधुर तरंगें, स्वर लहरियाँ ऋताओं के अंतर्मन में उतरती हैं और अवचेतन मन को अपने स्पंदन से बाँध कर उसे पुलकनकारी आनंद से विभोर कर देती हैं, जिसका एक बड़ा सुखद परिणाम होता है। मानव अपने सभी मानवीय पक्षों की ओर आकर्षित होता है। इस प्रकार यह मनुष्य को ‘मनुष्य’ बनाता है। संगीत का प्रभाव मनुष्य तो क्या पशु-पक्षियों और पेंड़-पौधों पर भी पड़ता है। संगीत की साधना वास्तव में नाद-ब्रह्म की ही उपासना है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को संगीत से जुड़ना चाहिए। यह बातें रविवार की संध्या, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के कला विभाग, संगीत और कला की अग्रणी संस्था कलाकक्ष और पर्यावरण-संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध युवाओं की संस्था ‘तरुमित्र’ के संयुक्त तत्त्वावधान में, आयोजित एक सप्ताह के ‘सांगितिक पावस शिविर’ का उद्घाटन करते हुए, सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि ‘गुगल मीट’ पर संचालित हो रहे शिविर में, संगीत की आरंभिक शिक्षा से लेकर, भक्ति -संगीत, मंत्रोच्चारण, लोक-संगीत, मूक अभिनय, लोक-नृत्य, कथक, भरत-नाट्यम, भेदन-नृत्य आदि की, रोचक विधि से शिक्षा दी जा रही है, जिससे बच्चे खेल-खेल में संगीत का ज्ञान अर्जित कर रहे हैं। शिविर के प्रथम दिन कलागुरु पं अविनय काशीनाथ, नृत्याचार्या डा पल्लवी विश्वास तथा आयुर्मान यास्क ने विविध प्रकार के प्रशिक्षण प्रदान किए। शिविर में तरुमित्र के संस्थापक फादर रौबर्ट एथिकल तथा देवप्रिया दत्त ने भी अपने विचार व्यक्त किए। शिविर का समापन, विश्व संगीत दिवस पर, 21 जून को किया जाएगा, जिस दिन कला और संगीत के विशिष्ट गुणीजनों के समक्ष प्रशिक्षुओं का प्रदर्शन होगा।