पटना /लोकजनशक्ति पार्टी में हुए ताजे घटनाक्रम वंश वाद की राजनीति के लिए दूर का संदेश दे रहे हैं कि यदि वंश वाद की राजनीति में यदि कोई इकलौता वारिस है और उसमे कुछ काबिलियत है तो वो पार्टी कुछ दिन चल जायेगी अन्यथा पार्टी पारिवारिक कलह में ही समाप्त हो जायेगी ।इतिहास हमेशा अपने आप को दोहराता है, एक समय था जब 80 के दशक के समय से लोकल पार्टियों का उदय होना सुरु हुआ और बीजू पटनायक, मुलायम , लालू, नीतीश, राम विलास पासवान, ममता, करुणानिधि , पवार आदि जैसे नेताओं ने अपनी पार्टी बना कर अपने अपने प्रदेशों में सत्ता में आ गए और उसी दौरान कांग्रेस पार्टी राज्यो से सिमटती चली गई और इनका प्रभाव बढ़ते चला गया ।पुराने नेता या तो किसी आंदोलन की उपज थे या उन्होंने बहुत संघर्ष कर अपनी पैठ जनता के बीच बना कर अपने पूरे जीवन सत्ता का सुख भोगा और अनाप शनाप पैसा इकट्ठा किया अब उनके पुत्र जो न किसी आंदोलन की उपज हैं और न ही पार्टी के लिए संघर्ष या त्याग किए हैं उल्टे चांदी का चम्मच ले कर पैदा होने के कारण उनमें तमाम दुर्गुण भी भरे हुए हैं और वे चाहते हैं की जनता का प्यार उन्हे उनके पिता की ही तरह मिले तो ये कैसे हो सकता है । जनता देखती सब कुछ है भले ही वो बोले कुछ नही ।अब इन नए राजनीतिक उत्तराधिकारियों में तमाम अवगुणों के आलावा घमंड भी बहुत ज्यादा है जिसके कारण ये आम जन से दूर होते जा रहे है और जब तक इनके पिता जिंदा हैं तब तक तो ये कुछ सहानुभूति पाते रहेंगे इसके बाद तो इन सभी का हाल चिराग पासवान वाला ही होना है ।मुझे नहीं लगता है कि राम विलास पासवान का वोट बैंक चिराग या पशु पति पारस को मिलने वाला है, चिराग का प्रभाव तो लोगों ने झारखंड और बिहार के विधान सभा चुनाव में देख ही लिया है और पशु पति और उनका पूरा खानदान सिर्फ राम विलास पासवान के नाम और प्रभाव के कारण राजनीति में अभी तक जीवित रहे हैं।यदि समय रहते ये सभी नेता पुत्र नवीन पटनायक से कुछ सीख सकें तो इनकी राजनीति चलती रहेगी अन्यथा ये सभी लोकल पार्टियों के कर्णधार समय के साथ हासिए पर चले जायेंगे ।
विजय सिंह सर के फेसबुक वॉल से.