वरिष्ठ संपादक सिया राम मिश्र वाराणसी कार्यालय से,गंगा का एक बहुआयामी स्वरूप है । सदियों से अविरल गंगा भारत के हजारों साल की परंपरा और सभ्यता की झांकी प्रस्तुत करती रही है । हिमालय से निकलने वाली गंगा से सरोकार रखने वाले उसके दोआब, जंगल , उसमें रहने वाले प्राणियों, वन्यजीव, साथ ही उस पर निर्भर आबादी को समग्र रूप से जानने के बाद ही गंगा को निर्मल और अविरल किया जा सकता है । गंगा को समझना बहुत जरूरी है । गंगा केवल एक नदी नही है । गंगा हमारे वेदों में हैं , गंगा इतिहास में, गंगा साहित्य में, गंगा हमारी फिल्मों में, गंगा क्रियाविधि में, भारतीय जनमानस के जीवन में सर्वत्र गंगा व्याप्त हैं । पुराणों के अनुसार गंगा दशहरा के दिन स्वर्ग से मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था । गंगा दशहरा महापुण्यकारी पर्व माना जाता है। ” गंगा च यमुने चेव, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदे सिंधू कावेरी, जलोस्मिन सन्निधि कुरू। ”पौराणिक किवंदति के अनुसार राजा भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर माँ गंगा इसी दिन भगीरथ के पूर्वजों की शापित आत्माओं को शुद्ध करने के लिए धरती पर अवतरित हुईं थीं। गंगा दशहरा पृथ्वी पर गंगा नदी के आगमन को चिह्नित होने के लिए मनाया जाता है। पृथ्वी पर अवतरण से पूर्व गंगा ब्रह्मा जी के स्तूप में विराजमान थीं। इसलिए उसके पास स्वर्ग की पवित्रता है। पृथ्वी पर अवतरित होने बाद स्वर्ग की पवित्रता उनके साथ आई। गंगा दशहरा उस दिन के सम्मान में धार्मिक आस्था के साथ मनाया जाता है जब देवी गंगा पृथ्वी पर आई थीं । राजा सगर के साठ हजार पुत्रों का उद्धार करने के लिए धरती पर आई गंगा तब से लेकर आज तक पृथ्वीवासियों को मुक्ति, शांति और आनंद प्रदान कर रही है । मा गंगा का दर्शन स्पर्श, पूजन और स्नान ही मानव मात्र के लिए काफी है । वर्तमान परिदृश्य में गंगाजल के अंधाधुंध दोहन के परिणाम स्वरुप जीवनदायिनी गंगा का अमृततुल्य जल प्रदूषित होता जा रहा है । गंगा ने हमें जीवन दिया है, अब गंगा को जीवन देने की हमारी बारी है । गंगा निर्मलीकरण अभियान के तहत नमामि गंगे की अगुवाई में प्रतिदिन वाराणसी के गंगा घाटों पर गंगा तलहटी की सफाई और जागरूकता का कार्य कर रहे संयोजक राजेश शुक्ला ने गंगा दशहरा के पावन पर्व पर कहा कि गंगा भारतीय संस्कृति की जीवनधारा है तथा अध्यात्म और संस्कृति की संवाहिका है। गंगा और हमारी संस्कृति एक दूसरे पर आधारित है। इनको अलग नहीं किया जा सकता है। ये एक दूसरे के पूरक हैं। मां गंगा का शुद्ध होना हमारे पर्यावरण की स्वच्छता का महत्वपूर्ण मापदंड है। गंगा और सहायक नदियों का क्षेत्र देश के 11 राज्यों पर है। यहां देश की 43 फीसद आबादी रहती है। इसलिए गंगा की स्वच्छता जरूरी है। इसी में गंगा की स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण का लक्ष्य भी जुड़ा है। इसके लिए 2015 में नमामि गंगे योजना शुरू की गई। सरकार द्वारा शुरू किए गए कार्य की अच्छे परिणाम भी आए हैं। घाटों की सफाई से न सिर्फ गंगा स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण को बल मिला है, बल्कि स्वच्छ और सुंदर घाट पर्यटकों को भी लुभाएंगे। गंगा को निर्मल, स्वच्छ और अविरल बनाना केवल सरकारों का दायित्व नहीं, बल्कि सभी देशवासियों का है। सरकार के साथ-साथ हम सभी का गंगा के प्रति जो सरोकार है उसे समझना और ईमानदारी से निभाना होगा। भारत के प्रत्येक नागरिक को स्वच्छ और निर्मल गंगा तथा पर्यावरण संरक्षण में अहम योगदान देना होगा । तभी हम गंगा जैसी जीवनदायिनी नदी को बचाने में सफल हो पाएंगे।
