पटना, २० जून। संसार के सभी मनुष्यों को अपना आदर्श, विचार और मत चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। बल पूर्वक किसी व्यक्ति या समाज पर किसी मत या विचार का थोपा जाना अन्याय है और उसे दासता की ओर ले जाने वाला कुत्सित अपराध समझना चाहिए । धार्मिक मान्यताओं और विचारों की स्वतंत्रता के लिए सिक्ख पंथ के ९ वें गुरु श्री गुरुतेग़ बहादुर सिंह ने अपना शीश देकर जो बलिदान दिया वह विश्व इतिहास में अद्वितीय है। अपने पूरे संज्ञान में शीश कटाना, एक ऐसी महान अनुभूति है, जिसकी कल्पना भी शरीर के रोम रोम को पुलकित कर देती है। गुरुदेव का यह बलिदान केवल किसी एक धर्म-विशेष की स्वतंत्रता की रक्षा और आदर्श की स्थापना हेतु बलिदान की प्रेरणा के लिए ही नहीं, मनुष्य की सांस्कृतिक विरासत और जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए भी दिया गया ऐतिहासिक उत्सर्ग है। भारतीय दर्शन और विचारों की रक्षा के लिए सिक्ख गुरुओं का बलिदान, इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में अंकित है।यह बातें रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, गुरुतेग़ बहादुर सिंह जी की जयंती के ४०० वर्ष पूरा होने आयोजित श्रद्धा-तर्पण और काव्यांजलि समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि गुरु महाराज एक महाबलिदानी संत, कल्याणकारी महात्मा और एक महान कवि भी थे। उन्होंने सौ से अधिक काव्य रचनाएँ भी की थी, जो ग्रंथ साहिब में संकलित है।समारोह का उद्घाटन करते हुए, तख़्त श्रीहरि मन्दिर साहिब गुरुद्वारा के जत्थेदार सिंह साहेब ज्ञानी रणजीत सिंह जी ने गुरु महाराज के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि यदि गुरु साहिब यहाँ नहीं आए होते, तो पता नहीं इस देश का क्या स्वरूप होता।उन्होंने कहा कि सभी धर्मों और उसके स्थानों का सम्मान किया जाना चाहिए। किसी का भी अपमान नहीं किया जाना चाहिए। जत्थेदार साहिब ने जी टी रोड का नाम गुरु तेग़ बहादुर सिंह रोड रखने की मांग की।श्रीहरि मन्दिर साहिब गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के महासचिव सरदार महेंद्रपाल सिंह ढिल्लन, सरदार सुदीप सिंह, सरदार त्रिलोक सिंह, सरदार जगजीत सिंह तथा ज्ञानी दलजीत सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इसके पूर्व सम्मेलन की ओर से आनंद मोहन झा ने सभी अतिथियों को वंदन-वस्त्र और पुष्पहार से अभिनन्दन किया।इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ डा उमाशंकर सिंह ने इन पंक्तियों से किया कि “—”।वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के अध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने कहा कि “पाँव आप मुड़ गए उधर ही, पास तुम्हारे आना था/ घटा साँवली, मानद पावन था, मौसम बड़ा सुहाना था/ बारिश के आसार साफ़ थे, बादल बरस न जाए कहीं/ लौट रहा घर, दूर दूर तक छुपाने का न ठिकाना था”। डा शंकर प्रसाद ने अपनी रचना “देश की सुनहरी हो जवानियाँ/ इंसाफ़ की डगर हो लासानियाँ/ देश के चरण को हम पखार दें!” को मधुर स्वर दिया तो सभागार तालियों से गंज उठा। कवयित्री आराधना प्रसाद ने इन पंक्तियों के मीठे स्वर से श्रोताओं को आनंद से गद्गद कर दिया कि “गुरु ज्ञान मिला जिनसे, संज्ञान मिला जिनसे/ उन चरणों में शुचि भावों के अर्पित हैं ये कल से”। वरिष्ठ कवि कमलेन्द्र झा ‘कमल’, जय प्रकाश पुजारी, डा अर्चना त्रिपाठी, कुमार अनुपम, पंकज प्रियम, अंकेश कुमार, कुंदन कुमार, श्रीकांत व्यास, अशमजा प्रियदर्शिनी, अर्जुन प्रसाद सिंह, राज किशोर झा, अरविंद कुमार प्रसाद, आदि कवियों ने अपनी रचनाओं से गुरुमहाराज को काव्यांजलि दी। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। सभी कवियों और कवयित्रियों को जत्थेदार ज्ञानी रणजीत सिंह ने सरोपा देकर सम्मानित किया।