पटना /संगीत का प्रभाव मानव-मन पर ही नहीं, पेंड-पौंधों पर भी गहरे रूप में पड़ता है। संगीत उनके हरे-भरे होने और बढ़ने में किसी औषधि की भाँति काम करते हैं। इसके अनेक उदाहरण सामने आएँ हैं, जिसने दुनिया को चकित कर दिया है। यह बातें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के कला विभाग, संगीत और कला की अग्रणी संस्था कलाकक्ष और पर्यावरण-संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध युवाओं की संस्था ‘तरुमित्र’ के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित, एक सप्ताह के ‘सांगितिक पावस शिविर’ के समापन समारोह में वक्ताओं ने कही। सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की अध्यक्षता में, ‘विश्व संगीत और योग दिवस’ के अवसर पर, सोमवार को आयोजित इस समारोह में विशिष्ट अतिथियों के रूप में, वरिष्ठ कला-मर्मज्ञ पद्मा अयंगर, वरिष्ठ स्त्रीरोग विशेषज्ञ और ब्रह्मा कुमारी परिचारिका डा रेणु चटर्जी, युवा-प्रोत्साहक रमन सिंधी, स्वप्ना मित्रा, तरुमित्र के संस्थापक फादर रौबर्ट एथिकल, युवा संगीतकार आशिक़ उपाध्याय, अभिनेता और मूकअभिनय प्रशिक्षक सुमित ठाकुर, कलाप्रेमी वरुण सिंह ने प्रशिक्षु छात्र-छात्राओं की मोहक प्रस्तुतियाँ देखीं और सबका उत्साह वर्द्धन किया।शास्त्रीय गायन की श्रेणी में राग भूपाली की प्रस्तुति अभिनव ओजस ने तथा भैरवी की प्रस्तुति काशिका पाण्डेय ने की। भरतनाट्यम शैली में की गई गणेश-वंदना में सजल आद्या, अदिति और जीवेश ने भाग लिया तो कथक की प्रस्तुति अनिष्का, पार्थिवि, तनिसी, अंकिता, अविका,चंद्रिका और भूमि ने दी। लोक-नृत्य की प्रस्तुति प्रियंका, प्रिया, आर्णा, अन्विता रित्विक, नेहा, ख़ुशी तथा हर्ष ने की। मूक अभिनय का प्रदर्शन कर तनीसी, जीवित, लोकेश, सौरभ, रिद्धि, अभिनव, रिंकु और श्वेता ने दर्शकों को मोहित कर दिया।स्मरणीय है कि विगत सात दिनों में कलाचार्य पं अविनय काशीनाथ, नृत्याचार्या तथा सम्मेलन की कलामंत्री डा पल्लवी विश्वास, आयुर्मान यास्क आदि प्रशिक्षकों ने देश भर से जुड़े विभिन्न विद्यालयों के ३० प्रशिक्षु छात्र-छात्राओं को गायन, नृत्य, मूक अभिनय, फ़्यूज़न म्यूज़िक, लोकसंगीत, लोक नृत्य, योग, मंत्रोच्चारण, कथक और भरतनाट्यम सहित संगीत की अन्य विधाओं में प्रशिक्षण दिया । ‘मीट द लीजेंड’ के अंतर्गत प्रत्येक दिन विविध क्षेत्रों की चर्चित विभूतियाँ बाच्चों को आशीर्वाद देने पहुँची। उनमे सुप्रसिद्ध फ़िल्म गीतकार विजय अकेला,नृत्यांगना राजेश्वरी, अमेरिका से कवयित्री और विज्ञानी डा श्वेता सिन्हा, वेंकुवर से संचारविद कवयित्री प्राची रंधावा, जर्मनी से शिक्षाविद कवयित्री डा शिप्रा शिल्पी, कनाडा से ‘सृजनी’ की संस्थापिका अर्चना पांडा, बेन किंग्सले की फ़िल्म ‘गांधी’ में अभिनय कर चुकी संस्कृतिकर्मी और दूरदर्शन केंद्र की पूर्व निदेशक डा रत्ना पुरकायस्था, सिस्टर स्मिता परमार तथा अभिनेत्री पूनम सिंह सम्मिलित रहीं।सम्मेलन अध्यक्ष डा सुलभ के इस विचार पर कि संगीत का प्रभाव प्रत्येक जीव पर पड़ता है, फादर रौबर्ट ने कहा कि ‘तरुमित्र आश्रम’, कुर्जी में लगाया गया उद्यान इसका सुंदर उदाहरण है, जो अब बड़े-बड़े घने वृक्षों के कारण वन का रूप ले चुका है। यहां, कोरोना-काल के पूर्व तक, विगत अनेक वर्षों से यह शिविर लगाया जाता रहा है। तरुमित्र की सचिव देबोप्रिया दत्त, शुभम, शिवम्, आस्था तथा रुमा इस आयोजन की सफलता के लिए निरंतर सक्रिए रहे ।
पटना डेस्क /संगीत सुनकर तेज़ी से बढ़े पेंड,उद्यान हुआ वन में परिवर्तित ‘सांगितिक पावस शिविर’ के समापन पर विद्वानों ने कहा, प्रशिक्षुओं ने दी मोहक प्रस्तुतियाँ
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