पटना, २४ जून। हिन्दी साहित्य में संतकवि कबीर का बहुत ही महनीय और उच्च स्थान है। वे प्रेम और ज्ञान के पथ-प्रदर्शक थे। कबीर ने हमें सिखाया कि माया और मोह से ग्रस्त व्यक्ति न तो स्वयं का भला कर सकता है न समाज का। उनकी शिक्षाओं में संसार को इहलोक और परलोक, दोनों ही को सुधारने का मार्ग मिलता है। उन्होंने खरी-खरी भाषा में केवल और केवल खरी बातें की। हमें सिखाया कि जिस व्यवहार की अपेक्षा हम अपने लिए करते हैं, वही व्यवहार औरों के साथ करें । हम प्रेम देंगे तभी हमें प्रेम मिलेगा।यह बातें आज यहाँ हिंदी साहित्य सम्मेलन में, संतकवि की जयंती पर आयोजित समारोह और कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि, कबीर ने विश्व मानवता को जीवन के मूल्य बताए, किंतु मनुष्यों ने कबीर के दोहों को रट तो लिया, उन पर व्याख्यान और उपदेश भी दिए, पर उन पर अमल नहीं किया। कबीर ने जिस वितराग और त्याग को, सार्थक जीवन का आधार और सोपान बताया, हमने उसे अपना ज्ञान प्रदर्शित करने का साधन समझा, आचरण योग्य नही माना। आज वासनाओं में डूबा संसार उसी पाखंड का परिणाम है। मनुष्य स्वयं कोरोना जैसी जन-संहार करने वाली आपदाओँ को आमंत्रित कर रहा है।इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने इन पंक्तियों से किया कि “आपका ग़म उठा रहा हूँ मैं/ इसलिए मुस्कुरा रहा हूँ मैं/ लौट कर फिर कभी न आऊँगा/ तेरी महफ़िल से जा रहा हूँ मैं” । वरिष्ठ शायर और आकाशवाणी के पटना केंद्र में वरिष्ठ कार्यक्रम अधिशासी शंकर कैमुरी का कहना था कि “देख कर है ख़फ़ा आईना/ जाने क्या कह गया आईना/ दोनों हैं आमने सामने/ मै तेरा तू मेरा आईना।”वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, जय प्रकाश पुजारी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, कवयित्री डा शालिनी पाण्डेय, कुमार अनुपम, डा आर प्रवेश, कौसर कोल्हुआ कमालपुरी, डा कुंदन कुमार, अर्जुन प्रसाद सिंह ने भी अपनी रचनाओं से ख़ूब तालियाँ बटोरी। इस अवसर पर डा हँसमुख सिंह, अमन वर्मा, चंद्रशेखर आज़ाद, डा विजय कुमार दिवाकर आदि काव्य-प्रेमी भी उपस्थित थे। मंच का संचालन डा शालिनी पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।