पटना, २६ जून । यश की कामना से दूर, जीवन पर्यन्त साहित्य और पत्रकारिता की एकांतिक सेवा कारने वाले डा दीनानाथ शरण हिन्दी के कुछ उन थोड़े से मनीषी साहित्यकारों में हैं, जिनके साहित्य की संसार की अनेक समृद्ध भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। वे मनुष्यता और जीवन-मूल्यों के कवि और विद्वान समालोचक थे। एक सजग कवि के रूप में उन्होंने पीड़ितों को स्वर दिए तथा शोषण तथा पाखंड के विरुद्ध कविता को हथियार बनाया। उनकी काव्य-रचनाओं का रूसी, चीनी, अरबी, तुर्की, आर्मेनियाई, अंग्रेज़ी आदि अनेक विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। अन्य भाषाओं में भी अनुवाद किया जा रहा है।
यह बातें आज यहाँ, डा दीनानाथ शरण स्मृति न्यास के सौजन्य से, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती एवं सम्मान-समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, शरण जी की ख्याति उनके द्वारा प्रणीत आलोचना-ग्रंथ ‘हिन्दी काव्य में छायावाद’ से हुई। उन्होंने नेपाल में भी हिन्दी के प्रचार के अत्यंत महनीय कार्य किए। त्रीभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू में ‘हिन्दी-विभाग’ की स्थापना का सारा श्रेय भी शरण जी को ही जाता है। वे ‘नेपाली साहित्य का इतिहास’ लेखन तथा नेपाली कृतियों के हिन्दी अनुवाद के लिए भी सम्मान पूर्वक स्मरण किए जाते हैं। उन्होंने साहित्य की प्रायः सभी विधाओं; कविता, कहानी, संस्मरण, उपन्यास, ललित निबंध, भेंट-वार्ता तथा शोध-निबंध में भी अधिकार पूर्वक लिखा।
इस अवसर पर समारोह के मुख्य अतिथि और पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय कुमार ने, गीतिधारा के चर्चित कवि आचार्य विजय गुंजन को, इस वर्ष का ‘डा दीनानाथ शरण स्मृति साहित्य साधना सम्मान’ से तथा आर्मेनिया में हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में उल्लेखनीय योगदान के लिए, रसियन-आर्मेनियन विश्वविद्यालय, एरेवान में हिन्दी की प्राध्यापिका डा संतोष कुमारी अरोड़ा को,विदुषी लेखिका ‘शैलजा जयमाला स्मृति हिन्दी सेवी सम्मान’ से विभूषित किया। सम्मान-स्वरूप आचार्य गुंजन को ग्यारह हज़ार रूपए की सम्मान-राशि तथा डा अरोड़ा को पाँच हज़ार एक सौ रूपए की राशि सहित वंदन-वस्त्र, स्मृति-चिन्ह और सम्मान-पत्र प्रदान किया गया। उनकी अनुपस्थिति में कवयित्री आराधना प्रसाद ने उनकी ओर से सम्मान ग्रहण किया।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने अपनी इन पंक्तियों से किया कि, “देख कर मुक़द्दर का तड़पते अरमां/ वो जो रूठा तो मनाने को तरसती आँखें”। वरिष्ठ ग़ज़लकार और सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ का कहना था कि “वो आए हैं फिर जो रहे घाट करते/ ज़रा हम भी चलकर मुलाक़ात करते/ सिमटती बहुत दूरियाँ रास्ते की/ जो कुछ दूर भी आपका साथ करते”। आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिशासी और चर्चित शायर शंकर कैमुरी ने अपनी ग़ज़ल को स्वर देते हुए कहा – “जमी से दूर जाना चाहता हूँ/ बलंदी पर ठिकाना चाहता हूँ/ वो मुफ़लिस है मगर बेटी की ख़ातिर / कोई ऊँचा घराना चाहता है”। आज के सम्मानित कवि आचार्य विजय गुंजन ने सम्मान के लिए सम्मेलन के प्रति आभार प्रकट किया और अपने इस मधुर गीत से कि “कल्पना के अटल सिंधु में डूबकर/ छंद पर छंद गढ़ते रहे रात भर/ नींद कच्ची अधूरी नयन में भरे/ अड़चनों से झगड़ते रहे रात भर” श्रोताओं का हृदय जीत लिया। कवयित्री आराधना प्रसाद का कहना था कि “शक्तियाँ जाग जाएं, कसे जब कमर/ फिर तो युग ये बदला जाएगा।”
वरिष्ठ कवि जियालाल आर्य, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, जय प्रकाश पुजारी, कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा शालिनी पाण्डेय, डा उमाशंकर सिंह, डा कुन्दन कुमार, अर्जुन प्रसाद सिंह आदि कवियों और कवयित्रियों ने भी अपनी रचनाओं से गीत-गंगा बहा कर सम्मेलन को रस में डुबो दिया। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
