पटना, २८ जून। हिन्दी और मगही के सुप्रतिष्ठ और वरिष्ठ कवि केशव प्रसाद वर्मा, समस्त काव्य-गुणों से युक्त एक अत्यंत सहृद और सुकुमार कवि थे। अपने जीवन के ८५ वर्षों में, पाँच दशक से अधिक का समय उन्होंने साहित्य-साधना को अर्पित किया। हिन्दी और मगही की गोद में १८ मौलिक ग्रंथ देने वाले वे एक प्रणम्य साहित्यकार थे, किंतु उन्हें वह यश नहीं मिल सका, जिसके वे अधिकारी थे।यह बातें, सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, कवी केशव के निधन पर आयोजित शोक-सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि वर्मा जी ने गत माह ही सम्मेलन की आजीवन सदस्यता ली थी और उनकी चार नवीन साहित्यिक कृतियों के लोकार्पण का उत्सव जुलाई में होने को था। लोकार्पण समारोह की तिथि मई में ही निर्धारित हुई थी, किंतु उनके ही आग्रह पर इसे आगे के लिए स्थगित कर दिया गया था। वे चाहते थे कि कोरोना का दुष्प्रभाव कम हो जाने के बाद यह उत्सव हो ताकि अधिक से अधिक लोग साक्षी बन सकें। किसे ज्ञात था कि उनके मन की साध मन में ही रह जाएगी और वे स्वयं उसका हिस्सा नहीं बन पाएँगे।
दिवंगत कवि से अत्यंत आत्मीय संबंध रखने वाले गीतकार जय प्रकाश पुजारी ने अपनी श्रद्धांजलि देते हुए, उनके साहित्यिक अवदानों की चर्चा कि तथा उनकी पुस्तकों ‘कहानी की नायिका’, ‘माधवी’, ‘ईप्सा’, ‘सुभद्रा-हरण’, ‘धरती का सच’ ‘बिहार की विभूतियाँ’, ‘साहित्यालाप’, ‘टहटह इजोरिया’ आदि से प्रसंग लेकर उनके रचनाकर्म पर भी प्रकाश डाला। शोक व्यक्त करने वालों में, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, श्रीकांत व्यास, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, कृष्ण रंजन सिंह, अर्जुन प्रसाद सिंह, अश्विनी कविराज, प्रेमनाथ खन्ना, स्थानीय पार्षद आशीष सिन्हा के नाम सम्मिलित हैं। सभा के अंत में दो घड़ी का मौन रख कर दिवंगत आत्मा की शांति और सद्गति के लिए प्रार्थना की गई। स्मरणीय है कि कवि केशव का निधन गत शनिवार को विक्रम प्रखंड अंतर्गत स्थित उनके पैतृक गाँव मोरियावाँ में हृदय गति रुक जाने से हो गया था।