पटना, ३० जून। नागार्जुन एक जीवंत कवि थे। बल्कि यह कहना चाहिए कि वे ‘कविता’ की ‘संज्ञा’ थे। यह उनको देख कर हीं समझा जा सकता था। संतकवि कबीर की तरह अखंड और फक्कड़! खादी की मोटी धोती और गंजीनुमा कुर्ता! वह भी मोटे खादी का। बेतरतीब बिखरे बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी और उसमें भी छोटा क़द ! उन्हें एक विचित्र सा, किंतु स्तुत्य व्यक्तित्व प्रदान करता था। एक निरंतर गतिमान, महात्मा बुद्ध के उद्घोष – “बहुजन हिताए, बहुजन सुखाए, लोकानुकंपाए, चरैवेति! चरैवेति!” के प्रत्यक्ष और जीवंत उदाहरण थे बाबा! इसलिए कहीं एक जगह ठहर नहीं सकते थे।यह बातें, ‘यात्री जी’, ‘बाबा’, ‘जनकवि’ आदि अनेकों उपनाम से चर्चित रहे प्रणम्य कवि पं वैद्यनाथ मिश्र ‘नागार्जुन’ की जयंती पर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि नागार्जुन जो थे, वही उनकी कविता भी थी। जो देखा, जो सुना, जो भोगा, वही लिखा! उनहीं यथार्थ को लोकरंजक शब्द दिए। कभी इस बात की परवाह नही की कि, कौन, कब रूष्ट हो जाएगा! उन्हें किसी ‘पद्म-श्री’ या ‘पद्म-विभूषण’ की अभिलाषा नहीं थी। वे तो एक महान संत थे। वितरागी! महापुरुष! उन्हें संसार से भला चाहिए क्या था! वह संसार को सच्चाई का मार्ग दिखाने आए थे । खरी-खरी, मगर प्रेम से कहकर, अपने तई अपने मन की सारी बातें, कबीर की भाँति, कह कर चले गए। हमारे लिए छोड़ गए साहित्य का एक विशाल भंडार, जिसका अवलंब लेकर हम समाज को श्रेष्ठ बनाने का उद्यम कर सकते हैं, यदि करना चाहें! बाबा हमेशा हमारे हृदय में बने रहेंगे! अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि नागार्जुन जितने महान कवि थे, उतने ही सरल भी थे। किसी ने उनसे पूछा कि कविता पढ़ने से आपको क्या मिलता है? उनका जवाब था – “लोग सम्मान पूर्वक माछ-भात खिलाते हैं। गद्देदार तोशक पर सुलाते हैं! और क्या चाहिए? वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार डा ध्रुब कुमार, डा अर्चना त्रिपाठी, कुमार अनुपम, बाँके बिहारी साव, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, विभा रानी श्रीवास्तव, अधिवक्ता शिवानंद गिरि ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित काव्यांजलि का आरंभ जय प्रकाश पुजारी ने वाणी वंदना से किया। वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने कहा कि “नदी उदास, समंदर उदास लगता है/ नज़र फिरे जिधर,मंजर उदास लगता है/ है ख़ौफ़ मौत का पसरा तमाम दुनियाँ में/ हरेक गाँव घर नगर उदास लगता है”। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, कौसर कोल्हुआ कमालपुरी, डा शलिनी पाण्डेय, राज किशोर झा, अर्जुन प्रसाद सिंह, निशिकांत मिश्र, अविनाश कुमार कविराज, डा कुंदन कुमार आदि ने अपनी रचनाओं का पाठ कर नागार्जुन के चरणों में काव्यांजलि अर्पित की।काव्यांजलि के पश्चात दिवंगत साहित्यकार डा सतीश राज पुष्करणा के निधन पर शोक-सभा आयोजित हुई, जिसमें वक्ताओं ने उन्हें बिहार में लघुकथा आंदोलन के प्रणेता के रूप में स्मरण किया। डा सुलभ ने कहा कि पुष्करणा जी एक सफल कहानीकार और लघुकथा-लेखक ही नहीं एक समर्थ ग़ज़लकार भी थे, गद्य और पद्य में उनकी समान-दृष्टि, समान अधिकार और सामर्थ्य था। उनके निधन से साहित्य जगत को बड़ी क्षति पहुँची है।