सियाराम मिश्रा, वरीय संपादक -वाराणसी। जापान के सहयोग से वाराणसी में बने रुद्राक्ष इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर का गुरुवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया तो यह मौका वैश्विक सभ्यता और संस्कृतियों के एकाकार होने का पल ही नहीं बल्कि वैश्विक संवाद का गवाह भी बना। पीएम नरें मोदी ने रुद्राक्ष परिसर में रुद्राक्ष का पौधा रोपकर इसके महत्व को परिपूर्ण किया तो जापान के राजदूत सातोशी सुजुकी संग पीएम ने फूलों से निर्मित दोनों देशों के झंडे के सामने तस्वीरें खिंचाकर दो देशों के संबोधों को नई खुश्बू से सराबोर कर दिया।आयोजन के दौरान जापान के पीएम योशीहिदे सुगा ने एक संक्षिप्त वीडियो संबोधन भी जारी किया। जिसमें जापानी पीएम ने कहा कि- ‘जापान सरकार और जनता की ओर से मैं वाराणसी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सम्मेलन केंद्र ‘रुद्राक्ष’ के उद्घाटन पर हार्दिक बधाई देना चाहता हूं। वाराणसी भारत के लंबे इतिहास और समृद्ध संस्कृति का केंद्र रहा है। इस केंद्र को ज्ञान का प्रतीक बनाने की उम्मीद से पीएम मोदी ने खुद इस केंद्र का नाम रुद्राक्ष रखा था। मुझे आशा है कि इसका उपयोग अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों, सांस्कृतिक और कला कार्यक्रमों की मेजबानी के माध्यम से जापान- भारत संबंधों को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच के रूप में किया जाएगा और जापान-भारत मित्रता का एक नया प्रतीक बन जाएगा। कोरोना संक्रमण ने इस समय हमारी पारस्परिक यात्राओं को कठिन बना दिया है। हम इस चुनौती को दूर करने के लिए संयुक्त रूप से काम करेंगे और हरित समाज, डिजिटल, साइबर, स्वास्थ्य सेवा और कनेक्टिविटी बढ़ाने जैसे क्षेत्रों में सहयोग के माध्यम से द्विपक्षीय संबंधों को और विकसित करने के लिए अत्यधिक प्रयास करेंगे।शिजो आबे को भी नहीं भूले पीएम मोदी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान संग संंबंधों पर केंद्रित अपने संबोधन में दोनों देशों के पारस्परिक संबंधों पर भी प्रकाश डाला। कहा कि- परम मित्र जापान और पीएम के साथ जापान के राजदूत को इस मौके धन्यवाद देता हूं। जापान के पीएम का संदेश भी देखा। उनकी वजह से ही रुद्राक्ष के रूप में यह उपहार काशी को मिला है। जब रुद्राक्ष की प्लानिंग चल रही थी जापानी पीएम उस समय चीफ सेक्रेटरी हुआ करते थे और तबसे इसमें व्यक्तिगत तौर पर शामिल रहे। इस आयोजन में एक और व्यक्ति जिनको भूल नहीं सकता वह हैं जापान के पूर्व पीएम शिंजो आबे जी। मुझे याद है जब वह पीएम के तौर पर काशी आए थे तो रुद्राक्ष के आइडिया पर लंबी चर्चा की। उन्होंने तुरंत अधिकारियों को निर्देश दिया और जापान के कल्चर पर परफेक्शन और प्लानिंग के साथ काम किया और आज यह भव्य इमारत काशी की शोभा बढ़ा रही है। रुद्राक्ष भारत जापान के भविष्य की संभावनाओं का स्रोत है।