पटना, १६ जुलाई। ‘वह किनारा कर गया तो सब किनारे हो गए / बुझे-बुझे से आसमां के सब सितारे हो गए”— “शमा का अंजाम न पूछ !” —– “फेंकना हो तो फूल फेंको, भूलकर पत्थर नहीं”। इन और ऐसी ही हृदय को छूने वाली पंक्तियों से बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन शुक्रवार को, मधुर काव्य-रस में डूबा रहा। कवियों और कवयित्रियों के कंठ से निकलती मधुर रचनाओं से श्रोता गए शाम तक विभोर होते रहे। अवसर था डा जगदीश पाण्डेय की जयंती पर आयोजित कवि सम्मेलन का।
सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की अध्यक्षता में आयोजित इस सारस्वत उत्सव का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। सम्मेलन के उपाध्यक्ष और राष्ट्रीयख्याति के वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने अपनी ग़ज़ल की इन पंक्तियों, “सोचना पहले कहीं वो फट तो जाए सर नहीं/ फेंकना हो फूल फेंको, भूलकर पत्थर नहीं/ उसको रखना है जिलाए अपनी अंतिम साँस तक/ है अभी ज़िन्दा जो तुझ में प्यास जाए मार नहीं” को, जब अपने ख़ास अंदाज़ में पढ़ी, तो पूरा सदन तालियों से गूंज उठा। डा शंकर प्रसाद ने अपनी गायिकी का कमाल अपनी इन पंक्तियों में दिखाया कि “शमा का अंजाम न पूछ परवाने के साथ जली/ शंकर ये है वादा-ए- दिल महफ़िल महफ़िल बात चली।”।
व्यंग्य के कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’ ने कहा कि “जल जमुना का है, ज़हर मत घोलो/ ज़हर डूबी जीभ से मुल्क को सलाम मत बोलो”। अहमदाबाद से आए वरिष्ठ कवि प्रदीप प्राश, जय प्रकाश पुजारी, कुमार अनुपम, राय प्रिया रानी, अर्जुन प्रसाद सिंह, जितेंद्र प्रसाद आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं से कवि-सम्मेलन को ऊँचाई प्रदान की। इस अवसर पर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी की पुस्तक ‘ज्ञान-रस आनंद’ का लोकार्पण भी किया गया।
अपने अध्यक्षीय उद्गार में सम्मेलन अध्यक्ष ने सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष डा जगदीश पाण्डेय को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि पाण्डेय जी पेशे से अभियन्ता थे, किंतु राज्य सरकार में अपनी सेवा के शीर्ष पद से अवकाश लेने के पश्चात उन्होंने अपना शेष जीवन लोक-कल्याणकारी कार्यों में लगा दिया। कला, संगीत और साहित्य समेत सभी सारस्वत विधाओं में उनकी गहरी अभिरुचि थी। वे साहित्य और साहित्यकारों के अत्यंत मूल्यवान पोषक थे। उन्होंने अपनी संपदा का पूरी निष्ठा से सारस्वत सेवाओं के लिए उपयोग किया। वे अपनी उदारता और सारस्वत सेवाओं के लिए सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन जिन दिनों मृत प्राय हो चला था, उन्होंने संजीवनी देने का कार्य किया। अपने अध्यक्षीय काव्य पाठ में उन्होंने अपनी इस सूफियाना ग़ज़ल को स्वर दिया कि “वह किनारा कर गया तो सब किनारे हो गए/ बुझे-बुझे से आसमां के सब सितारे हो गए।”
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, पाण्डेय जी ने साहित्य सम्मेलन को आड़े वक़्त में संरक्षण देकर तथा साहित्यकारों को विविध प्रकार से सहयोग देकर, हिन्दी की उन्नति में बड़ा हीं महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। ईश्वर की उन पर बड़ी कृपा थी। वे दस हाथों से कमाते थे और दर्जनों हाथों से सदकर्म में लुटाते थे। डा पाण्डेय के पुत्र डा रमेश चंद्र पाण्डेय, डा कुमार इंद्रदेव, प्रो सुशील कुमार झा तथा बाँके बिहारी साव ने भी अपने विचार रखे। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
इस अवसर पर, रविंद्र कुमार सिंह, रूपक शर्मा, अमित कुमार सिंह, अश्विनी कविराज, अमन वर्मा, चंद्रशेखर आज़ाद, दुःख दमन सिंह, एक राम ओझा, अभिषेक कुमार आदि सुधीजन उपस्थित थे।