फतुहा। साहित्य से ही समाज में मनुष्यता बचेगी। इसमें समाज को जोड़ने, सबका हित करने, दुखियों की आँखों के आँसू पोछने तथा युगान्तकारी परिवर्तन की अपार क्षमता होती है। साहित्य को बल साहित्यिक पत्रिकाएँ देती हैं। समाज को चाहिए कि वह साहित्यिक पत्रिकाओं की रक्षा करे।यह बातें शनिवार को, फतुहा की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था जन साहित्य परिषद के तत्वावधान में आयोजित त्रैमासिक पत्रिका ‘साहित्य वैभव’ के लोकार्पण समारोह में, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। दीपिका भारती के संपादन में प्रकाशित इस पत्रिका का लोकार्पण दूरदर्शन बिहार के निदेशक डॉ ओमप्रकाश जमुआर ने किया। इस अवसर पर ‘हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता:दशा और दिशा’ विषय पर विचार गोष्ठी भी आयोजित हुई। समारोह के मुख्य अतिथि डॉ ओमप्रकाश जमुआर ने कहा कि मीडिया लोकतंत्र की ताकत है। इसे एक सजग प्रहरी की तरह काम करना चाहिए। डॉ अनिल सुलभ ने साहित्यक पत्रिकारिता की समृद्ध परम्परा के क्षीण होते जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जनमानस पर साहित्य का गहरा प्रभाव पड़ता है। सभा की अध्यक्षता करते हुए, सुप्रसिद्ध लेखक और ‘साहित्य यात्रा’ के सम्पादक डॉ कलानाथ मिश्र ने विभिन्न प्रसंगों के जरिए हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता के समक्ष उपस्थित चुनौतियों की विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कहा कि साहित्य जीने की कला सिखाता है और समाज को वैचारिक समृद्धि प्रदान करता है। साहित्य को समाज का दर्पण कहने से काम नहीं चल सकता है क्यों कि दर्पण में सिर्फ चेहरा दिखाई पड़ता है , लेकिन साहित्य में आत्मा की आवाज़ होती है। इस अवसर पर भारतीय रेल में राजभाषा अधिकारी डा राजमणि मिश्र, श्यामनंदन यादव, अशोक प्रजापति, प्रो हीरा प्रसाद, अमित कुमार, जैनेन्द्र कुमार, दीपिका भारती,श्वेता शेखर, राजेन्द्र राज, मनीषा कुमारी आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए! समारोह का संचालन प्रसिद्ध कथाकार रामयतन यादव ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ लक्ष्मी नारायण सिंह ने किया।