कौशलेन्द्र पाराशर की रिपोर्ट /कोविड -19 के रोगियों को मोटे बिल थमा रहे अस्पतालों को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई है. सोमवार को अदालत ने कहा कि रोगियों को राहत देने के बजाए अस्पताल बड़े उद्योग बन गए हैं. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की बेंच बीते साल दिसंबर में दिए अपने आदेश की मौजूदा स्थिति का जायजा ले रही थी. इस दौरान कोर्ट को अवगत कराया गया कि अस्पताल कोविड के मरीजों का काफी बड़ा बिल तैयार कर रहे हैं. सीनियर एड्वोकेट दुष्यंत दवे ने अपने परिवार और भाई के रिश्तेदार से जुड़ा एक अनुभव साझा किया. उन्होंने कहा, ‘उनका इलाज करने वाले अस्पताल ने 17 लाख रुपये का बिल बनाया था और फिर भी उन्हें बचाया नहीं जा सका. अस्पतालों की तरफ से वसूली जाने वाली फीस की कोई सीमा होनी चाहिए और मरीजों को ठगे जाने से बचाया जाना चाहिए. कई लोगों ने अपने रिश्तेदारों से इलाज के लिए पैसे उधार लिए हैं. वे लगभग दिवालिया हो चुके हैं. अस्पताल की फीस की कोई सीमा होनी चाहिए.’बेंच ने कहा, ‘अस्पताल बड़ी इंडस्ट्री बन गए हैं. क्या हमें अस्पतालों को रियल एस्टेट इंडस्ट्री की तरह देखना होगा या एक ऐसा सेक्टर, जो परेशान मरीजों को राहत पहुंचाता है.’ बेंच ने बीते साल 18 दिसंबर को सभी कोविड अस्पतालों में नोडल अधिकारियों की सीधी नियुक्ति और जिला समितियों को सभी कोविड केयर हॉस्पिटल में फायर ऑडिट करने के निर्देश दिए थे. इन घटनाओं में कई मरीज और स्वास्थ्य कर्मियों की मौत हो गई थी. एड्वोकेट दवे ने कोर्ट को जानकारी दी कि जस्टिस (रिटायर्ड) डीए मेहता की अगुवाई में काम कर रही कमेटी ने रिपोर्ट सौंप दी है. इस दौरान उन्होंने शिकायत उठाई कि यह रिपोर्ट किसी काम की नहीं है, क्योंकि इसमें अस्पताल में आग की घटनाओं के पीड़ितों के परिजनों को सार्थक रूप से प्रक्रिया में शामिल होने से रोका गया था.गुजरात की तरफ से पेश हुए सीनियर एड्वोकेट मनिंदर सिंह ने कहा कि राज्य आयोग की रिपोर्ट के बंद लिफाफे में कोर्ट के सामने पेश करेगा. क्योंकि इसे सभा में रखा जाना जरूरी है. उन्होंने यह भी बताया कि राज्य आयोग की तरफ से की गई सिफारिशों के अनुपालन से जुड़ी एक रिपोर्ट भी दाखिल करेगा. इस दौरान अदालत ने गुजरात सरकार की तरफ से 8 जुलाई को जारी किए गए नोटिफिकेशन पर सख्ती दिखाई. इसमें गैर अनुपालन संरचनाओं में संचालित हो रहे अस्पतालों को जून 2022 तक नियमों से छूट देने की बात कही थी.अदालत ने कहा, ‘एक बार जब सुप्रीम कोर्ट की तरफ से परमादेश होता है, तो उसे कार्यकारी अधिसूचना से खारिज या रद्द नहीं किया जा सकता. जब आपने कहा कि उप नियमों का उल्लंघन कर रहे भवनों के खिलाफ अगले साल 30 जून तक कार्रवाई नहीं की जाएगी, तो क्या आप चाहते हैं कि ऐसी ही घटनाओं के चलते और लोग मरें.