पटना, २१ जुलाई। अपने जीवन को किस प्रकार मूल्यवान और गुणवत्तापूर्ण बनाया जा सकता है, इसके जीवंत उदाहरण और प्रेरणा-पुरुष थे, साहित्यसेवी जगत नारायण प्रसाद ‘जगतबंधु’। उनका अनुशासित और कल्याणकारी जीवन स्वयं में हीं एक ऐसा ग्रंथ रहा, जिसका अध्ययन कर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को मूल्यवान और सार्थक बना सकता है। ९३ वें वर्ष की आयु में उन्होंने अपना देह छोड़ा, पर ९२ वर्ष की अवस्था में भी, वे ७० वर्ष के किसी व्यक्ति से अधिक स्वस्थ, सक्रिय और ज़िंदादिल दिखते थे। जीवन से सात्विक-प्रेम रखने वाले और सबके लिए कल्याण की सदकामना रखने वाले कर्म-योगी थे जगतबंधु। उनकी हिन्दी सेवा भी श्लाघ्य और अनुकरणीय है।यह बातें बुधवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह में सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि, बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के रूप में अपनी निष्ठापूर्ण सेवाओं से अवकाश लेने के पश्चात जगतबंधु जी साहित्य की ओर अभिमुख हुए और हिन्दी साहित्य की भी उसी निष्ठा से सेवा की। ‘गीतांजलि’ के नाम से ‘गीता’ पर हिन्दी में लिखी इनकी पुस्तक, उनके विशद आध्यात्मिक ज्ञान, चिंतन और लेखन-सामर्थ्य का हीं परिचय नहीं देती, पाठकों को गीता के सार को समझने की भूमि भी प्रदान करती है। सम्मेलन के संरक्षक सदस्य और सुप्रसिद्ध पर्यावरण-वैज्ञानिक साहित्यकार डा मेहता नगेंद्र सिंह की ८१ पूर्ति पर आज उनका भी ससम्मान अभिनंदन किया गया। सम्मेलन अध्यक्ष ने वंदन-वस्त्र और पुष्पहार से डा मेहता का अभिनंदन किया। डा सुलभ ने उन्हें एक कर्मठ पर्यावरण-वैज्ञानिक तथा निष्ठावान साहित्यकार बताते हुए कहा कि पर्यावरण-साहित्य में डा मेहता का यगदान अभूतपूर्व है। ‘हरित वसुंधरा’ पत्रिका के माध्यम से उन्होंने एक चिर-स्मरणीय कार्य किया है।हिन्दी और अंग्रेज़ी के विद्वान साहित्यकार प्रो राम भगवान सिंह, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’, डा शंकर प्रसाद, जगतबंधु जी के पौत्र नीलेश रत्नम, सत्य प्रियदर्शी, विश्व रंजन तथा अवधेश सिन्हा ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। इस अवसर पर एक शानदार कवि-सम्मेलन का भी आयोजन हुआ, जिसमें कवियों और कवयित्रियों ने दिल को छूने वाली पंक्तियों से सम्मेलन सभागार को स्पंदित कर दिया। वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने अपनी ग़ज़ल को स्वर देते हुए कहा कि “बहुत संभल के चले हम ज़रा जो पी के चले/ मिली जो ज़िंदगी जीने को हम वो जी के चले/ दिखा न रोशनी ‘करुणेश’ दिन में सूरज को/ जला चराग अंधेरा हो वहीं दीप जले”।डा शंकर प्रसाद का कहना था कि “करवट करवट काँटें हैं, नींद भी हमसे भागे हैं/ हाल न पूछो जीवन का सब कुछ भागे भागे हैं”। काव्य-पाठ करने वालों में व्यंग्य के कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा अर्चना त्रिपाठी, डा सुलक्ष्मी कुमारी,डा शलिनी पाण्डेय, डा पल्लवी विश्वास, माधुरी भट्ट, इन्दु उपाध्याय, सिंधु कुमारी, चंदा मिश्र, डा कुंदन कुमार, राज किशोर झा के नाम सम्मिलित हैं। कार्यक्रम का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।इस अवसर पर बाँके बिहारी साव, आनंद मोहन झा, अविनय काशीनाथ, अमित कुमार सिंह, श्री बाबू, आयुर्मान यास्क, काशिका पाण्डेय समेत सुधीजन उपस्थित थे।