पटना, २८ जुलाई। पिछली सदी के महान समाजोद्धारकों में परिगणित बाबा साहेब भीम राव आम्बेडकर पर दशकों से पुस्तकें लिखी जाती रही हैं। गद्य में भी और पद्य में भी। किंतु सुप्रसिद्ध कथाकार और कवि जियालाल आर्य द्वारा विरचित काव्य-ग्रंथ ‘बाबा साहेब आम्बेडकर’, उन पर लिखा गया श्रेष्ठतम महाकाव्य है। इस काव्य-कृति में, यद्यपि कि कतिपय स्थलों पर छंद की बल्गा ढीली हुई अवश्य दिखती है, किंतु कवि ने अपने समस्त मनोभाव को कीर्ति-पुरुष पर केंद्रित करते हुए, उनके जीवन के सभी महत्त्वपूर्ण प्रसंगों को प्राणवंत करने में यथेष्ट सफलता अर्जित की है। जीवन के कटु यथार्थ को भी प्रतिष्ठापित करने में कवि ने अभिनव काव्य-कल्पनाओं और मृदुलता का महनीय परिचय दिया है, यह उनके साहित्य-बोध का भी परिचायक है।यह बातें बुधवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी और वरिष्ठ साहित्य-सेवी जियालाल आर्य के सद्यः प्रकाशित काव्य-ग्रंथ ‘बाबा साहेब आम्बेडकर’ के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि श्री आर्य का परिचय साहित्य समाज में एक निपुण कथाकार के रूप में था, किंतु इस महाकाव्य ने उन्हें एक समर्थ कवि के रूप में भी पहचान दी है।इसके पूर्व समारोह का उद्घाटन करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि लोकार्पित पुस्तक में कवि की महान शोध-वृति का परिचय मिलता है। इसमें इन्होंने बाबा साहेब के जीवन के विविध पक्षों पर गहन शोध किया है। पुस्तक के लेखक ने यह सिद्ध किया है कि वो हिन्दी साहित्य के आम्बेडकर हैं।मुख्य-वक्ता के रूप में अपना विचार रखते हुए, भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी और पूर्व कुलपति ईश्वर चंद्र कुमार ने कहा कि, आर्य साहेब ने इस महाकाव्य में, बाबा साहेब के संपूर्ण व्यक्तित्व, कृतित्व और उनके जीवन-संघर्ष को काव्य रूप दिया है। अछूतोद्धार के लिए उनके द्वारा किए गए महान संघर्ष को इस कृति में बहुत ही मार्मिक चित्रण हुआ है। कवि ने ऐतिहासिक तथ्यों के साथ भी पूरा न्याय किया है। वे शिक्षा के महान पक्षधर थे।
पुस्तक के रचनाकार श्री आर्य ने कहा कि बाबा साहेब ने अछूतोद्धार के लिए ही नहीं, उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के उद्धार के लिए भी संघर्ष किया। ‘हिन्दू कोड बिल’ के माध्यम से वे अपने इस महान संकल्प को पूरा करना चाहते थे। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब के महान व्यक्तित्व के निर्माण में उनकी धर्मपत्नी रमा बाई का बहुत बड़ा त्याग और वलिदान था।नई धारा के संपादक डा शिव नारायण ने कहा कि यह बाबा साहेब पर हिन्दी में लिखा गया पहला महाकाव्य है। बिहार के लिए यह गौरव का विषय है कि यह कार्य इस प्रांत के ही एक समर्थ कवि ने किया है। इस महाकाव्य का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष ‘आत्म-मंथन’ शीर्षक से रचित काव्यांश है। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, कुमार अनुपम, डा मेहता नगेंद्र सिंह, कवि विजय गुंजन, हरींद्र विद्यार्थी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा अर्चना त्रिपाठी, श्रीकांत व्यास, जय प्रकाश पुजारी, तथा पंकज प्रियम ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर पद्मश्री विमल जैन, राकेश आर्य, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, मृत्युंजय ठाकुर, अभिलाषा कुमारी, चितरंजन भारती, राज किशोर झा, अर्जुन प्रसाद सिंह, शशि भूषण प्रसाद सिंह, अमन सिंह आर्य, आदर्श आर्य, अतिकांत आर्य, आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।