पटना, ३० जुलाई। ‘सोजे-वतन’ जैसी उर्दू कहानियों से अपनी साहित्यिक यात्रा आरंभ करने वाले मुंशी प्रेमचंद हिन्दी के कथा-सम्राट के रूप में इसलिए ख्यात हुए कि उन्होंने भारत के लोक-जीवन और उनकी समस्याओं का नब्ज़ पकड़ा था। उनकी कहानियाँ, भारत के आमलोगों की कहानियाँ थी। उनमें किसान, मज़दूर और ग़रीबों की पीड़ा और प्रतिकार के स्वर थे। इसीलिए वे आम पाठकों को उनकी अपनी कहानियाँ लगीं। प्रेमचंद मानव-मन की मूल-ग्रंथियों को स्पर्श करते हैं, इसलिए हर काल में प्रासंगिक हैं।
यह विचार शुक्रवार को, प्रेमचंद जयंती की पूर्व संध्या पर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित परिसंवाद और लघुकथा-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, आज की कहांनियाँ, जिनहें ‘नई कहानी’ भी कहते हैं,कथा-साहित्य में एक नया आयाम तो अवश्य जोड़ रही हैं, पर उसमें निजता और वैयक्तिता अधिक लक्षित होती है। आज की कहानियों में आमजन से अधिक लेखक का आत्मबोध अधिक मुखर है। उन्होंने कहा कि लघुकथा लिखते समय लेखकों को यह स्मरण रखना चाहिए कि वह विहारी के दोहों की तरह ‘देखन में छोटन लगे, घाव करत गम्भीर’ को चरितार्थ करे।अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, प्रेमचंद ‘युगबोध’ के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कथाकार हैं। उन्होंने अपने युग की सभी प्रवृतियों को समझा और उन्हें अपनी सर्जना का विषय बनाया। प्रेमचंद अपनी कहानियों में सदा जीवित और प्रासंगिक रहेंगे।सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, प्रो बासकीनाथ झा, बाँके बिहारी साव, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा सुमेधा पाठक, अमरेन्द्र कुमार, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता तथा जय प्रकाश पुजारी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा कल्याणी कुसुम सिंह ने ‘राखी’ शीर्षक से, पूनम आनंद ने टूट गयी डोर’, डा सुलक्ष्मी कुमारी ने ‘कोरोना के पोज़िटिव इफ़ेक्ट’, डा शालिनी पाण्डेय ने ‘लालच’, डा सागरिका राय ने ‘दूसरा कौन’, प्रेमलता सिंह ने ‘ये कैसी सजा’, चितरंजन भारती ने ‘बुद्ध का जन्म’, अर्जुन प्रसाद सिंह ने ‘इंसान की तलाश’, राज किशोर झा ने ‘निन्दा’ शीर्षक से अपनी लघुकथा पढ़ी। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
इस अवसर पर डा कुमार गंगेश गुंजन, अमीर नाथ शर्मा, रंजन कुमार सिंह, दिनेश कुमार वर्मा, अमन वर्मा, अमित कुमार सिंह, आनंद कुमार , चंद्रशेखर आज़ाद, अश्विनी कुमार कविराज, श्रीबाबू आदि अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।