जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना (नयी दिल्ली), जीकेसी (ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस) कला संस्कृति प्रकोष्ठ के सौजन्य से महान इतिहासकार और कहानीकार मुंशी प्रेमचंद की जयंती 31 जुलाई के अवसर पर वर्चुअल कार्यक्रम “अभिव्यक्ति ” का आयोजन किया गया, जिसमें कायस्थ समाज के देश भर के लोगों ने सहभागिता की एवं मुंशी प्रेमचंद जी के व्यक्तित्व एवं साहित्य पर प्रकाश डालते हुए एक से बढ़कर एक प्रस्तुति देकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।जीकेसी कला-संस्कृति प्रकोष्ठ के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और वर्चुअल कार्यक्रम “अभिव्यक्ति ” के संयोजक प्रेम कुमार ने बताया कि मुंशी प्रेमचंद को हिंदी और उर्दू साहित्य के क्षेत्र के महान लेखकों में से एक माना जाता है। हिन्दी साहित्य को नए आयाम देने और नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की सभी कालजयी रचनाएँ समाज की ऐसी सच्ची तस्वीरें हैं जो आज भी जीवंत हैं और कभी धुँधली नहीं हो सकतीं।उन्होंने बताया कि मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर इस कार्यक्रम को जीकेसी कला- संस्कृति प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय महासचिव पवन सक्सेना और राष्ट्रीय सचिव श्रीमती श्वेता सुमन ने होस्ट किया।कार्यक्रम के सफल संचालन में डिजिटल- तकनीकी प्रकोष्ठ के ग्लोबल अध्यक्ष आनंद सिन्हा, डिजिटल- तकनीकी प्रकोष्ठ के ग्लोबल महासचिव सौरभ श्रीवास्तव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।कार्यक्रम के अंत में जीकेसी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और कवि आलोक अविरल ने धन्यवाद ज्ञापन के साथ, सभी को कार्यक्रम सफल बनाने के लिए आभार व्यक्त किया।जीकेसी के ग्लोबल अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद ने बताया कि धनपत राय श्रीवास्तव उर्फ मुंशी प्रेमचंद हिंदी लेखक, कहानीकार और साहित्यकार थे। उनकी लिखी हुई कहानियां आज भी प्रासंगिक है। प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी थी। हिंदी साहित्य की दुनिया में यथार्थवाद को पेश करने का श्रेय, उनको ही दिया जाता है। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। कई कालजयी रचनाओं ने मुंशी प्रेमचंद को महान बनाया है। मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य की विभिन्न विधाओं को अपनी लेखनी से समृद्ध किया। मुंशी जी हमारे समाज के लिए साहित्य और सांस्कृतिक के मिसाल और सच्चे मार्गदर्शक हैं। उनकी साहित्यिक विरासत को अगली पीढ़ी तक ले जाने की ज़िम्मेदारी युवा साहित्यकारों की है जिन्हें बाज़ारू समझौतों से परे निर्भीक होकर लिखना चाहिए।पवन सक्सेना ने कहा कि तप कर ही सोना कुंदन बनता है, यह कहावत मुंशी प्रेमचन्द्र जी पर बिल्कुल सटीक बैठती है। साधारण परिवार से आने वाले मुंशी जी ने अपने व्यक्तिगत संघर्ष को, मानवीय संवेदनाओं को शब्दों में कुछ यूं पिरोया कि दुनियां उनकी मुरीद हो गई। तभी तो क्रिकेट से जुड़े सचिन तेंदुलकर को अपना भगवान मानते हैं तो कलम के सिपाही भी शब्दों के जादूगर करिश्माई मुंशी प्रेमचन्द्र को ही अपना भगवान मानते हैं। मुंशी प्रेमचन्द्र का साहित्य एक ऐसा आइना है जिसमे ना सिर्फ हमारे समाज का अतीत और वर्तमान दिखता है बल्कि भविष्य के संकेत भी समाहित नजर आते हैं।कवि आलोक अविरल ने कहा कि कायस्थ समाज के लोग साहित्य, संगीत और कला की पूजा करते हैं और इसलिए सभी को क़लम के सच्चे सिपाही मुंशी प्रेमचंद जी की तस्वीर अपने घरों में रखनी चाहिए और अपने बच्चों को उनके साहित्य से अवगत कराना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुंशी प्रेमचंद जी की कहानियों के तमाम वीडियो और ऑडियो फ़ाइल्स यूट्यूब व वेब पर उपलब्ध हैं जिन्हें बच्चे आसानी से देख भी सकते हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि माध्यम कोई भी हो लेकिन मुंशी प्रेमचंद जी के साहित्य को अगली पीढ़ियों तक प्रसारित करने की ज़िम्मेदारी हमारे ही कंधों पर है।
श्वेता सुमन ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद जी की कालजेयी रचनायें आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक है ,उन्होंने उत्कृष्ट साहित्य के माध्यम से बौद्धिक चेतना का विकास किया और पाठक तैयार किये। आज हमारा यहदायित्व है कि हम उसे संजोए और नई पीढ़ी तक पहुंचाए। मुंशी प्रेमचंद की सहज-सुगम लेखनी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी अपने रचनाकाल में थी। उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में नवीन मूल्यों की स्थापना की। कार्यक्रम के दौरान भोपाल से मनीष श्रीवास्तव बादल, मुंबई से आलोक अविरल, इलाहाबाद से शीला गौड़, पटना से शिवानी गौड़, सुभाषिणी स्वरूप, प्रदीप कुमार, नीरव समदर्शी, डा. श्वेता, नीना मंदिलवार, बोकारो से गीता कुमारी, पटना से निशा पराशर, रश्मि सिन्हा और ऋचा वर्मा ने शानदार प्रस्तुति से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।