१ अगस्त। रहस्य-रोमांच से भरे अपने तिलिस्मी उपन्यासों से पूरी दुनिया के पाठकों को का हृदय जीत लेने वाले हिन्दी के अद्भुत प्रतिभा के उपन्यासकार बाबू देवकी नंदन खत्री को पढ़ने के लिए अंग्रेज़ों ने ही नहीं, अनेक भाषाओं के विद्वानों ने हिन्दी सीखी। कथा-सम्राट के रूप में विख्यात हुए मुंशी प्रेमचंद समेत हिन्दी के प्रायः सभी कथाकारों ने उन्हें पढ़कर कथा-लेखन में प्रवृत्त हुए। कथा-कहानी में रूचि रखने वाला स्यात् ही कोई लेखक या पाठक होगा, जिसने खत्री जी की विश्व-विख्यात कृतियाँ ‘चंद्रकांता’ और अनेक खंडों में प्रकाशित ‘चंद्रकांता संतति’ न पढ़ी हो। बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले, अब समस्तीपुर के माली नगर गाँव में जन्मे कथा-शिरोमणि खत्री जी बिहार के एक ऐसे गौरव-मुकुट हैं, जिन्हें हिन्दी संसार तिलिस्मी कहानियों के पितामह के रूप में स्मरण करता है।यह बातें रविवार को, खत्री जी के पुण्य-स्मृति दिवस पर,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, खत्री सभा, बिहार तथा साहित्य सम्मेलन के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। इस अवसर पर, खत्री सभा द्वारा,सम्मेलन को भेंट की गए उनके चित्र का अनावरण, समारोह के मुख्य अतिथि और पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय कुमार ने किया। अपने उद्घाटन-संबोधन में न्यायमूर्ति ने कहा कि, पुरुषोत्तम दास टण्डन एक महान स्वतंत्रता सेनानी और वलिदानी राष्ट्रभक्त ही नहीं हिन्दी के बड़े उन्नायक थे। हिन्दी जगत में महान उपन्यासकार खत्री जा का बड़ा ऊँचा स्थान है।आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, खत्री सभा के अध्यक्ष अनन्त अरोड़ा ने कहा कि खत्री जी खत्री-समाज के लिए ही नहीं संपूर्ण भारत वर्ष के गौरव-पूरुष हैं। हिन्दी के लिए अपना संपूर्ण जीवन देने वाले टण्डन जी का भी वही स्थान है। हमें इन दोनों साहित्य-पुरुषों की स्मृति को सदैव जीवित रखना है। अखिल भारत वर्षीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संस्थापक प्रधानमंत्री और महान हिन्दी-सेवी राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन को भी उनकी जयंती पर श्रद्धापूर्वक स्मरण किया गया। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में भारत के जिन महापुरुषों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, उनमे टण्डन जी का अप्रतिम स्थान है। वे सच्चे अर्थों में राजा भी थे और ऋषि भी। वे अनेक वर्षों तक भारतीय संसद के सदस्य भी रहे, पर वहाँ से प्राप्त होने वाली समस्त राशि, हिन्दी संस्थाओं और हिन्दी-सेवियों में बाँट देते थे। ऐसे वलिदानी पुरुषों के स्मरण मात्र से मन गंगाजल सा पावन हो जाता है।वरिष्ठ कथाकार जियालाल आर्य, दीन बंधु खत्री, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, खत्री सभा के महासचिव दिलीप कुमार मेहरा, राकेश कक्कड़, अश्विनी खत्री, बी एन कपूर, प्रो बासुकी नाथ झा, कुमार अनुपम, प्रेम खन्ना, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, प्रभात धवन ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन सम्मेलन के अर्थमंत्री सुनील कुमार दूबे तथा खत्री-सभा के उपाध्यक्ष अभिजीत कुमार ने संयुक्त रूप से किया। धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।इस अवसर पर, वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, डा रमेश चंद्र पाण्डेय, जयप्रकाश पुजारी, बाँके बिहारी साव, श्रीकांत व्यास, राज किशोर झा, अर्जुन प्रसाद सिंह, अनिल रश्मि, भूषण खत्री, डा कुंदन कुमार, चंद्र शेखर आज़ाद, आलोक चोपड़ा, प्रणब कुमार समाजदार समेत प्रबुद्धजन उपस्थित थे।