पटना, ५ अगस्त। महाकवि रामदयाल पाण्डेय न केवल एक महान स्वतंत्रता-सेनानी, ओज और राष्ट्रीय भाव के यशमान कवि, तेजस्वी पत्रकार और हिन्दी के महान उन्नायकों में से एक थे, बल्कि सिद्धांत और आदर्शों से कभी न समझता करने वाले एक स्वाभिमानी साधु-पुरुष थे। उन्होंने हिन्दी भाषा और साहित्य की ही नहीं, साहित्य-सम्मेलन की भी बड़ी सेवा की। पाँच-पाँच बार सम्मेलन के अध्यक्ष चुने गए। सम्मेलन भवन के निर्माण में अपने सिर पर ईंट-गारे तक ढोए और अन्य साहित्यकारों को भी इस हेतु प्रेरित किया। ऐसे त्यागी थे कि भारत सरकार के स्वतंत्रता-सेनानी पेंशन लेने से भी यह कह कर इनकार कर दिया कि, “भारत माता की सेवा पुत्र की भाँति की, किसी कर्मचारी की तरह नहीं, कि सेवा-शुल्क लूँ।”यह बातें गुरुवार को साहित्य सम्मेलन में महाकवि राम दयाल पाण्डेय और हिन्दी के महान पृष्ठ-पोषक बाबू गंगा शरण सिंह की जयंती पर आयोजित समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, पाण्डेय जी के इन्हीं सद्गुणों के कारण उन्हें, बिहार सरकार ने राष्ट्रभाषा परिषद का निदेशक-सह-अध्यक्ष बनाया था। उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा भी प्राप्त था। किंतु जब उन्हें लगा कि राज्य-सरकार उनके विचार और सिद्धांत के सामने बाधा बन रही है तो उस पद को छोड़ने में उन्होंने एक क्षण भी नहीं लगाया। आदर्श और सिद्धांत, राष्ट्र और राष्ट्र-भाषा उनके लिए और किसी भी वस्तु अथवा पद से बहुत बड़ी थी। उनके मूल्य पर उन्हें कुछ भी स्वीकार्य नहीं था।बाबू गंगा शरण सिंह को स्मरण करते हुए डा सुलभ ने कहा कि हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा का स्थान मिले इस हेतु देश भर के जिन महापुरुषों ने अपना सारा मन-प्राण लगाया, उनमे गंगा बाबू अग्र-पांक्तेय हैं। उन्होंने साहित्य में भले ही कोई योगदान नहीं दिया, किंतु संपूर्ण भारतवर्ष में घूम-घूम कर हिन्दी का प्रचार करते रहे।इस अवसर पर आयोजित कवि-गोष्ठी का आरंभ कवि जय प्रकाश पुजारी ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने तरन्नुम से यह पंक्तियाँ पढ़ी कि “ऊपर घिरे घिरे उस घन श्यामल ने मुझको घेर लिया/ नीचे फिर इस हरे भरे आँचल ने मुझको घेर लिया/ बीच राह ‘करुणेश’ जहां बचने छुपने का ठौर नहीं/ वहीं ज़ोर से बरस-बरस बादल ने मुझको घेर लिया”, जिसे सुन कर पूरा सभागार झूम उठा। डा शंकर प्रसाद का कहना हुआ कि “कोई याद आया सबेरे सबेरे/ बहुत दिल जलाया सबेरे/ मुझे से चुरा कर मेरा ही तराना/ धीरे गुनगुनाया सवेरे सवेरे”। कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय प्रकाश ने कहा कि “अपने ही वतन से घात पर घात/ हरदम नई साज़िश की खोज/ गिद्धों का हर दिन एक भोज”।सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, बच्चा ठाकुर, कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, पं गणेश झा, रंजन कुमार सिंह, राज किशोर झा, अर्जुन प्रसाद सिंह, बाँके बिहारी साव, विष्णु कुमार तथा अश्विनी कुमार कविराज ने अपनी रचनाओं से श्रद्धांजलि अर्पित की। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।इस अवसर पर चंद्रशेखर आज़ाद, रामाशीष ठाकुर, श्रीबाबू, दुःख दमन सिंह, अभय आनंद, मानिक सिंह, अमन वर्मा, अमित कुमार सिंह आदि प्रबुद्धजन समारोह में उपस्थित रहे।