पटना , ८ अगस्त। “आमंत्रण दृग से हुआ, लिए एक मनुहार/ हुए श्रावणी प्राण-धन, बरसी प्रीत-फुहार”– “मन चंचल हिरण बन बैठा, लगा कुलाँचे भरने/ अल्हड़ हो मदमस्त चली मैं, जैसे बहते झरने”– “जैसे-जैसे नीलाभ का तन हुआ सांवला/ वैसे-वैसे वसुंधरा का मन हुआ बाबला”। ऐसी ही लुभावनी पंक्तियों और गीतों से हरित-वसना कवयित्रियों ने श्रोताओं का मन हर लिया।
अवसर था, साहित्य सम्मेलन की महिला विभाग द्वारा आयोजित ‘सावन-महोत्सव और कवयित्री-सम्मेलन’ का। शनिवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित यह कवयित्री-सम्मेलन एक चिर-स्मरणीय अनुभूति छोड़ गया। तीसरे पहर से आरंभ हुआ यह मधुरोत्सव संध्या-काल तक श्रोताओं को रिमझिम फुहार से भिगोता रहा। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा की अध्यक्षता में आयोजित इस कवयित्री सम्मेलन का आरंभ कवयित्री डा सुलक्ष्मी कुमारी की संस्कृत में स्वरचित सस्वर पठित वाणी-वंदना से हुआ। इनके पश्चात डा सीमा रानी ने जैसे ही यह कहा कि “जैसे-जैसे नीलाभ का तन हुआ साँवला/वैसे-वैसे वसुंधरा का मन हुआ बाबला”, सम्मेलन सभागार में एक सावनी-सिहरन फैल गई। सम्मेलन में तैर रही सिहरन में, मधु रानी लाल ने अपने इस दोहे से कि “आमंत्रण दृग से हुआ, लिए एक मनुहार/ हुए श्रावणी प्राण-धन, बरसी प्रीत फुहार”, ऋंगार-रस भर कर उसे और भी पुलकनकारी बना दिया।कवयित्री अभिलाषा कुमारी ने अपने प्रियतम को इन पंक्तियों से बुलाबा भेजा कि “आओ न प्रिय ! पीड़ किसको सुनाएँ! तुम बिन तनिक भी न ये घन सुहाए!”। डा अर्चना त्रिपाठी की अनुभूति थी कि “मन चंचल हिरण बन बैठा, लगा कुलाँचे भरने/ अल्हड़ हो मदमस्त चली मैं जैसे बहते झरने”। डा सुलक्ष्मी ने घन-श्यामल को इंगित कर कहा कि “कृष्ण-वदन घनश्याम तुम हो/ इस मुरली की तान तुम हो/ गीत के सुर-ताल तुम ही/ गीत-कविता के छंद तुम हो” । डा सागरिका राय ने सावन में शिव को पूजा दी और कहा – “मेरे शिव ! उमंग, तरंग, सतरंग में/ प्रकृति के रज कण-कण में/ तुम्हीं तो हो – मेरे शिव !” डा सुमेधा पाठक का आग्रह था कि “मुझे मेरे गाँव ले चलो! वर्षा की फुहारों में तन-मन भीग जाने दो! मीत मेरे! मुझे मेरे गाँव ले चलो”। वरिष्ठ कवयित्री डा पुष्पा जमुआर, डा सुधा सिन्हा, पूनम आनंद, डा मौसमी सिन्हा, प्रेमलता सिंह, डा करुणा कमल पीटर, डा नीलू अग्रवाल, राज प्रिया रानी, अर्चना सिन्हा, डौली बागड़िया, माधुरी भट्ट, लता प्रासर, नूतन सिन्हा, श्वेता मिनी तथा रौली कुमारी ने भी अपनी काव्य-फुहार से श्रोताओं के सूखे मन को अंतर तक सींच दिया। श्रोता-दीर्घा में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ, डा शंकर प्रसाद, डा मेहता नगेंद्र सिंह, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, प्रो सुशील कुमार झा, कवि जयप्रकाश पुजारी, सुनील कुमार दूबे, बच्चा ठाकुर, कवि गणेश झा, कृष्ण रंजन सिंह, अंबरीष कांत, डा अमरनाथ प्रसाद आदि अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन की साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने तथा मंच का सुंदर संचालन कवयित्री डा शालिनी पाण्डेय ने किया।
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