पटना, ११ अगस्त। हिन्दी भाषा और साहित्य के महान उन्नायक आचार्य शिवपूजन सहाय दधीचि समान साहित्यर्षि थे। वे बिहार के साहित्यिक गौरव थे। उन्हें कथा-सम्राट मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों और महाकवि जयशंकर प्रसाद के ग्रंथों के परिशोधन और संपादन का भी गौरव प्राप्त था। वे देश के अग्र-पांक्तेय विद्वान और आचार्य थे। वे बिहार हिन्दी साहित्य-सम्मेलन के अध्यक्ष और राष्ट्रभाषा परिषद, बिहार के संस्थापक मंत्री थे। लगभग ९ वर्षों तक सम्मेलन परिसर में उनका आवास था। उनके प्रभा-मंडल के कारण, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, देश भर के साहित्यकारों का तीर्थ-स्थल बन गया। यह बातें, बुधवार को साहित्य सम्मेलन सभागार में, आचार्य सहाय तथा गोपाल सिंह नेपाली की जयंती पर आयोजित समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। नेपाली जी को स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि अपने जीवन काल में हीं नेपाली जी ‘गीतों के राज कुमार’ के रूप में अखिल भारतीय ख्याति अर्जित कर ली थी। यदि वे फ़िल्मों में नहीं जाते और असमय काल के भक्ष्य नहीं बने होते तो वे ‘गीत-सम्राट’ कहे जाते। मन की गति से वे काव्य-सृजन करने में समर्थ थे।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। सम्मेलन के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र’करुणेश’ ने अपनी ग़ज़ल को स्वर देते हुए कहा कि “ज़ख़्म भी, मरहम भी, मजलिस भी है, वीरानी भी है/ पास अपने है बहुत कुछ, आग भी है,पानी भी है/ जाम तो बच जाय, शीशा चूर हो जाए मगर/ होशियारी भी कहो ‘करुणेश’ नादानी भी है”। वेतिया से आए चर्चित कवि गोरख प्रसाद ‘मस्ताना’ ने शिकायत की कि “हो गुलाब तो काँटों वाली ग़ज़लें लगे सुनाने क्यों? बादल बनकर आए हो तो आग लगे बरसाने क्यों?”। डा शंकर प्रसाद ने कहा – “वो आँखों में था अब दिल में समाया/ मेरा घर बसाया सबेरे-सबेरे।”
ओज के कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’ ने सूरज को चुनौती देते हुए कहा कि “अगर है हिम्मत बची सूरज में/ तो वह निकल कर दिखलाए रात में”। कवयित्री डा अर्चना त्रिपाठी का कहना हुआ कि “तुम मेरी तकलीफ़ों से गाफ़िल अपने में मसगूल/ और इधर मैं अपनी ही तन्हाई में गमगीन”। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, डा मेहता नगेंद्र सिंह, कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा शालिनी पाण्डेय, जय प्रकाश पुजारी,चितरंजन भारती, बाँके बिहारी साव, राज किशोर झा, रौली कुमारी, अर्जुन प्रसाद सिंह, विष्णु कुमार ने भी अपनी गीति-रचनाओं से श्रोताओं को हाथ खोलने पर विवश किया। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।इस अवसर पर डा रणजीत कुमार, रवि भूषण राय, अश्विनी कविराज, अमीरनाथ शर्मा, अमन वर्मा, डा पुरुषोत्तम कुमार, सुरेंद्र चौधरी,चंद्रशेखर आज़ाद, श्री बाबू आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।