प्रियंका भारद्वाज की रिपोर्ट /सोनिया गाँधी ने एक अख़बार में लिखा है कि हाल ही में समाप्त हुए मानसून सत्र में संसदीय प्रक्रियाओं और सहमति बनाने की प्रक्रिया के प्रति नरेंद्र मोदी सरकार कीउदासीनता सबने देखी है. विपक्ष को राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे उठाने से लगातार रोका गया- चाहे वह विध्वंसक कृषि कानून हो या मिलिट्री ग्रेड सॉफ्टवेयर के जरिए संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों, विपक्ष के नेताओं, पत्रकारों और एक्टिविट्स की जासूसी, लगातार बढ़ती महंगाई या बेरोजगारी का मुद्दा हो.सोनिया गाँधी कहा कि ‘पिछले सात सालों में सदन में बिना डिबेट के या संसदीय समिति द्वारा समीक्षा किए बगैर विधेयक को पारित कराए जाने का सिलसिला लगातार बढ़ा है. परिणाम यह हुआ है कि संसद रबर स्टैंप बनकर रह गई है. जनता के जनादेश का अनादर करते हुए लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई राज्य सरकारों को गिरा दिया गया है. मीडिया को व्यवस्थित तरीके से धमकाया गया है और सत्ता से सच बोलने की अपनी जिम्मेदारी को भूलने के लिए मजबूर किया गया है. सच्चे लोकतंत्र की संरचना को मजबूत करने के लिए जिन संवैधानिक संस्थाओं को सावधानीपूर्वक बनाया गया था, उन्हें कुचल दिया गया है. साथ ही उन मूल्यों को भी नष्ट किया जा रहा है, जो हमारे लोगों को समानता, न्याय और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अविभाज्य अधिकार प्रदान करते हैं.’कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष ने आगे लिखा कि ‘अफसोस की बात है कि पिछले 75 वर्षों में हम सबसे खराब निरंतर आर्थिक गिरावट के साक्षी रहे हैं. भारत में कोविड-19 महामारी आने से पहले ही तेज रफ्तार वाली अर्थव्यवस्था को खराब फैसलों, जिनका कोई आर्थिक औचित्य नहीं था, के जरिए ध्वस्त कर दिया गया. अर्थव्यवस्था में मंदी अपने साथ भयंकर दुष्परिणाम लेकर आई और इसका सबसे ज्यादा असर आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों पर पड़ा. इनमें स्वरोजगार करने वाले, लघु और मध्यम उद्योगों, किसानों और रोजगार की तलाश कर रहे युवाओं के साथ लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूरों पर पड़ा है. बेरोजगारी, गरीबी और कुपोषण बढ़ने से तेजी से विकास करने वाले मध्यम वर्ग पर भी खासा असर पड़ा है. कुछ खास लोगों को छोड़कर सभी स्तर के उद्यमी संकट में हैं. लेकिन, सरकार संकेतों पर ध्यान देने, सलाह करने और लोगों के हाथ में पैसा देकर अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने के बजाय ईंधन पर ऊंचे टैक्स से लेकर आय के व्यापक नुकसान तक आम आदमी के ऊपर हर रोज बोझ बढ़ाती जा रही है.उन्होंने कहा, ‘महामारी के कुप्रबंधन से स्वास्थ्य सेवा में सुधार के दशकों की प्रगति को उलट दिया गया. अहंकार और खराब योजना के परिणाम स्वरूप जीवन और आजीविका तबाह हो गई है. कभी हम विश्व के सबसे बड़े वैक्सीन उत्पादक होने पर गर्व करते थे. फिर भी हमारी आबादी के एक छोटे से प्रतिशत का ही पूर्ण टीकाकरण हो पाया है. इसकी वजह समय पर वैक्सीन का ऑर्डर ना दिया जाना है. इसकी वजह से संक्रमण की आगामी लहरों का खतरा बढ़ गया है और सामान्य दिनचर्या में लौटने के लिए हमारे लोग संघर्ष कर रहे हैं. महामारी के कुप्रबंधन का दुष्परिणाम ये हुआ है कि हमारे बच्चों की शिक्षा पर दीर्घकालीन और गंभीर असर पड़ा है.देश में हरित क्रांति की अगुवाई करने वाले हमारे किसान महीनों से प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन, सरकार उनकी वाजिब चिंताओं पर ध्यान नहीं देती है. सरकार को किसानों से बात करनी चाहिए और उनकी मांगों को स्वीकार भी करना चाहिए. हमें सुनिश्चित करना होगा कि जो लोग हमें अन्न उपलब्ध कराते हैं, वे खुद भूखमरी के शिकार ना हो.’ इसके साथ सोनिया गांधी ने कहा कि वस्तु एवं सेवा कर व्यवस्था वर्षों के प्रयास का परिणाम थी. यह उस भरोसे को दर्शाती है, जो हमारे राज्यों ने केंद्र सरकार पर जताया था. लेकिन, हाल के वर्षों में गैर साझा करने योग्य उपकरों के जरिए राज्यों को कुल राजस्व के उनके सही हिस्से से वंचित किया जा रहा है. यह एक अदूरदर्शी नीति है, जो संघीय ढांचे को खोखला बनाती है. साथ ही विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं के कार्यान्वयन में बाधा डालती है.सोनिया गांधी ने अपने लेख में केंद्र सरकार पर विभिन्न जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप भी लगाया है. उन्होंने कहा है कि डॉक्टर्ड वीडियो, प्लांटेड सबूत और फेक टूलकिट के जरिए विरोध की आवाज को दबाया जा रहा है. सरकारी एजेंसियों को राजनीतिक विरोधियों को अक्सर निशाना बनाती है. ऐसे कदमों का उद्देश्य लोगों को डराने और लोकतांत्रिक आजादी की नींव को तोड़ना है. उन्होंने सवाल उठाते हुए लिखा कि एक लोकतंत्र के रूप में दशकों की प्रगति के बाद आज यह खतरे में क्यों है? ऐसा इसलिए है कि गवर्नेंस और ठोस उपलब्धियों की जगह अब खोखले नारों, इवेंट मैनेजमेंट और सत्ता में बैठे लोगों की छवि चमकाने ने ले ली है. ऐसा इसलिए कि उद्देश्यपूर्ण कार्रवाई की जगह प्रतीकवाद ने ली है. ऐसा इसलिए कि लोकतंत्र की जगह तानाशाही ने ले ली है. आज का प्रतीकवाद और सच्चाई ये है कि संसद को म्यूजियम में बदल दिया गया है.कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष ने कहा कि ‘आजादी के 75वें वर्ष में हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों के ऋणी हैं कि हम अपने गणतंत्र को हुए इस नुकसान की भरपाई करें. हमें स्वतंत्रता को संरक्षित और मजबूत करने के लिए लड़ना चाहिए जिसके लिए उन्होंने इतना बलिदान दिया. हमें उन लोगों द्वारा अपने प्रतीकों को हथियाने के खोखले प्रयासों से प्रभावित नहीं होना चाहिए जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए हमारे संघर्ष में कोई योगदान नहीं दिया. वे गांधीजी का चश्मा उधार ले सकते हैं, लेकिन हमारे देश के लिए उनका नजरिया गोडसे का ही है. हमारे संस्थापकों ने 74 साल पहले उस विभाजनकारी विचारधारा को खारिज कर दिया था और हमें इसे एक बार फिर से खारिज कर देना चाहिए.