पटना, १९ अगस्त। जीवन को परिभाषित करने वाली अमर रचना ‘जीवन का झरना’ के महान कवि आरसी प्रसाद सिंह, मैथिली और हिन्दी के एक ऐसे यशमान साहित्यिक व्यक्तित्व हैं, जो काव्य-संसार में, बिहार के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों, दिनकर, प्रभात, वियोगी, नेपाली और जानकी बल्लभ शास्त्री के साथ परिगणित होते हैं । वे प्रकृति, प्रेम, जीवन और यौवन के महाकवि थे। उनकी रचनाओं में जीवन के प्रति अकुँठ श्रद्धा, उत्साह और सकारात्मकता दिखाई देती है। कवि अपनी इन विश्रुत पंक्तियों में, जीवन के संदर्भ में भारत के उस शाश्वत जीवन-दर्शन का चित्रण प्रस्तुत करते हैं, जिसमें जीवन के प्रति एक रागात्मक वितराग है – “जीवन क्या है? निर्झर है/ मस्ती हीं इसका पानी है/ सुख-दुःख के दोनों तीरों से / चल रहा राह मनमानी है”।
इस अवसर पर आयोजित कवि-गोष्ठी का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने जीवन की आकांक्षा को शब्द दिए कि, “जाते तीखा घाम साथ था, आते शीतल छाया/ आधी धूप मिली मुझको फिर आधा मुझको साया/ गीत दर्द ने दिया मुझे ग़ज़ल ज़ख़्म ने दी/ इनको गले लगाकार माइने खुले कंठ से गाया”।
डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, “बड़ा ख़ुदगर्ज़ मौसम है कराए जो वही कम है/ जिधर देखो उधर झुकती निगाहे-यार पुरनम है”।
डा मधु वर्मा ने अपनी कविता में आरसी बाबू को ऐसे नमन किया कि, “सुष्क नीरस मन, तन मृतप्राय करता है/ खुली बाँहों से वर्तमान को सजाओ/ जीवन की शाखाओं से प्रेम बूँद बरसाओ”।
वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, डा मेहता नगेंद्र सिंह, पं गणेश झा, जय प्रकाश पुजारी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, राज आनंद, चितरंजन भारती आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’ ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
इस अवसर पर, बाँके बिहारी साव, चंद्रशेखर आज़ाद, कौशलेंद्र पाण्डेय, अश्विनी कविराज, विष्णुकांत लाल, अमन वर्मा, संजीव रंजन, सुरेंद्र चौधरी, रीना कुमारी एवं अशोक कुमार भी उपस्थित थे।