पटना, २८ अगस्त। हिन्दी कथा-साहित्य को महनीय ऊँचाई प्रदान करने वाले बहुभाषाविद मनीषी साहित्यकार डा भगवती शरण मिश्र का व्यक्तित्व प्रणम्य था। भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी रहे डा मिश्र ने ‘पवन पुत्र’, ‘पुरुषोत्तम’, ‘प्रथम पुरुष’, ‘पीताम्बरा’, ‘मैं राम बोल रहा हूँ’, ‘पहला सूरज’, ‘अथ मुख्यमंत्री कथा’ जैसे उपन्यासों तथा अन्य अनेक पुस्तकों से हिन्दी साहित्य को समृद्धि प्रदान की। वे शिवहर ज़िला के प्रथम समाहर्ता , प्रखर वक़्ता, कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ राजभाषा विभाग, बिहार, हिन्दी ग्रंथ अकादमी, भोजपुरी अकादमी तथा मैथिली अकादमी के निदेशक भी रहे। सेवा से अवकाश के बाद उन्होंने एकनिष्ठ भाव से हिन्दी और साहित्य की अहर्निश सेवा की । कोई विराम नहीं लिया । निरंतर लिखते रहे। वे बिहार के गौरव-पूरुष थे। उनके निधन से हिन्दी भाषा और साहित्य की बहुत बड़ी क्षति पहुँची है। आज समग्र साहित्य जगत शोकाकुल है।यह बातें शनिवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, डा मिश्र के निधन पर आयोजित शोक-सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि भगवती बाबू का संपूर्ण व्यक्तित्व साहित्यिक था। उनके विपुल रचना-संसार में ही नहीं, उनके आचरण और व्यवहार में भी ‘साहित्य’ की झलक मिलती थी। पौराणिक-पात्रों पर उनके द्वारा विरचित उपन्यास , कथा-साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। उनकी भाषा प्रांजल और काव्यमय थी। डा सुलभ ने कहा कि डा मिश्र का जन्म मार्च १९३९ में रोहतास ज़िला के बेन सागर ग्राम में एक प्रज्ञकुल में हुआ था। उन्होंने प्रशासनिक सेवा में आने से पूर्व, अपने जीवन-वृत का आरंभ आरा के जैन कालेज और फिर राँची कौलेज में अर्थ शास्त्र के व्याख्याता के रूप में किया था। विभिन्न प्रशासनिक-पदों पर रहते हुए, उन्होंने समाज की सेवा, एक साहित्यकार के रूप में की।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, कुमार अनुपम, डा सुभाष पाण्डेय, अम्बरीष कांत, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा कुंदन कुमार, अधिवक्ता शिवानंद गिरि, राज किशोर झा, बाँके बिहारी साव, श्री बाबू आदि ने भी अपने शोकोद्गार व्यक्त किए।स्मरणीय है कि डा मिश्र का निधन, ८२ वर्ष की आयु में, गत शुक्रवार की सुबह सुप्तावस्था में ही, दिल्ली स्थित अपने आवास पर हो गई। शनिवार को उनके पार्थिव देह का अग्नि-संस्कार दिल्ली के सैदगाँव शमशान घाट पर संपांन हुआ। मुखाग्नि उनके द्वितीय पुत्र डा दुर्गा शरण मिश्र ने दी। उनके बड़े पुत्र जनार्दन मिश्र अपनी अस्वस्थता के कारण आरा से दिल्ली नहीं जा सके। डा मिशे अपने पीछे तीसरे पुत्र अंबिका शरण सिंह समेत तीन पुत्र तथा पुत्रियाँ माया मिश्र, छाया मिश्र, आशा मिश्र तथा उषा मिश्र को रोते विलखते छोड़ गए हैं।