सीनियर एडिटर:जितेन्द्र कुमार सिन्हा ::भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि गुरूवार विक्रमसंबत 2078 दिनांक 09 सितम्बर 2021 को हरतालिका तीज पर रवियोग 14 वर्ष बाद चित्रा नक्षत्र के कारण महत्वपूर्ण है। 09 सितम्बर को दोपहर 2 बजकर 30 मिनट से 10 सितम्बर को 12 बजकर 57 मिनट तक तीज रहेगा। हरतालिका तीज के लिए 09 सितम्बर को अति शुभ समय शाम 5 बजकर 16 मिनट से शाम 6 बजकर 45 मिनट तक, शुभ समय 6 बजकर 45 मिनट से 8 बजकर 12 मिनट तक है। रवियोग रहने के कारण हरतालिका व्रत की पूजा का महत्व है।हरतालिका तीज पर पूजन के दौरान महिलाओं काले, नीले और बैगनी रंग के वस्त्र नहीं पहनना चाहिए। महिलाओं को लाल, महरूम, गुलाबी, पीले और हरे रंग के वस्त्रों को पहनकर विधि-पूर्वक पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके माता पार्वती और भगवान शिव का पूजन करना चाहिए। हरतालिका तीज गुरूवार होने के कारण भगवान विष्णु की भी कृपा प्राप्त होगी।जिन कन्याओं के विवाह में बाधाएं आ रही है और विलंब हो रहा है, तो इस व्रत को करने से उनका विवाह जल्द होगा। हरतालिका तीज व्रत का पूजन रवियोग में करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है। राजा हिमांचल की पुत्री पार्वती ने भगवान षिव की प्राप्ति के लिए तथा मनोकामनाएं हेतु हरतालिका तीज की व्रत की थी। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है।हरितालिका तीज व्रत के दिन सुहागिनें अपनी पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए निराहार और निर्जला व्रत रखती हैं।हरतालिका तीज को हिन्दू धर्म में सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि यह व्रत अत्यंत शुभ फलदायी होता है। हरतालिका तीज को हरियाली और कजरी तीज के बाद मनाते हैं। हरितालिका तीज में श्री गणेश, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है।सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियाँ मन मुताबिक वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती है। तीज व्रत करने वाली स्त्रियाँ सूर्योदय से पूर्व ही उठकर और स्नानादि से निवृत होकर पूरा श्रृंगार करती है। पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित करने के बाद माता पार्वती को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और भगवान शिव और माता पार्वती विवाह की कथा सुनती है। व्रत की पात्र कुमारी कन्याये या सुहागिन महिलाएं दोनों ही हैं। परन्तु एकबार व्रत रखने के बादजीवन पर्यन्त इस व्रत को रखना पड़ता है। यदि व्रती महिला गंभीर रोगी हालात में हो तो उसके बदले में उसका पति व्रत को रख सकते हैं ऐसा विधान है। ज्यादातर यह व्रत उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग मनाते हैं। तीज व्रत के व्रती को शयन का निषेध और रात्रि में भजन-कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करने का प्रावधान है। प्रातःकाल स्नान करने के पष्चात् श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक किसी सुपात्र सुहागिन महिला को श्रृंगार सामग्री, वस्त्र, खाद्य सामग्री, फल, मिष्ठान एवं यथा शक्ति आभूषण दान करना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस वर्ष 09 सितम्बर को हरतालिका तीज मनाई जायेगी। इस वर्ष तीज पर 14 वर्ष बाद रवियोग होने के कारण अद्भुत योग में व्रत और पूजन से सुहागिन महिलाओं की सभी मुरादें पूरी होगी। हरतालिका तीज पर भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती है।हरितालिका तीज पूजन करने के लिए सबसे पहले मिट्टी से भगवान शिव, माता पार्वती और श्रीगणेश की, तीनों की प्रतिमा बनानी चाहिए और भगवान गणेश को तिलक करके दूर्वा अर्पित कर पूजा प्रारम्भ करना चाहिए। इसके बाद भगवान शिव को फुल, बेलपत्र और शमिपत्री अर्पित करने के बाद माता पार्वती को श्रृंगार का सामान अर्पित करना चाहिए। तीनों देवताओं को वस्त्र अर्पित करने के बाद हरितालिका तीज व्रत कथा सुनना या पढ़ना चाहिए। इसके बाद श्रीगणेश की आरती कर, भगवान शिव और माता पार्वती की आरती उतारने के बाद भोग लगाना चाहिए।ऐसी मान्यता है कि हरतालिका तीज को निर्जला रहकर कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियाँ भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती है, तो तीज व्रत को करने वाली स्त्रियाँ पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती है।