पटना, १३ सितम्बर। हिन्दी दिवस मनाने का औचित्य तब तक सिद्ध नही हो सकता, जबतक भारत की सरकार इसे देश की ‘राष्ट्रभाषा’ घोषित नहीं कर देती। यह स्वतंत्र भारत का अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष है कि इस देश की अपनी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। अनेक भाषाओं के इस देश में अभी भी भारत की सरकार के कामकाज की, अर्थात राजकीय -भाषा, एक विदेशी भाषा बनी हुई है। १४ सितम्बर, १९४९ को, भारत की संविधान-सभा ने, ‘हिन्दी देश की केंद्रीय सरकार के कामकाज की भाषा होगी’, ऐसा निर्णय किया था। किंतु संविधान सभा का यह संकल्प आज तक पूरा नहीं हुआ। राज मुकुट पहनाकर भी हमने उसे सत्ता नहीं सौंपी। हिन्दी अभी भी कोप-भावन में है और सौत सत्ता पर क़ाबिज़ है। यदि हम किसी भी प्रकार से यह समझते हैं कि भारत में भारतीयों का शासन है तो हमें भारत की भाषा हिन्दी को विना किसी देरी के भारत की राष्ट्रभाषा घोषित करनी चाहिए।यह बातें सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित हिन्दी दिवस समारोह एवं हिन्दी सप्ताह के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने प्रधानमंत्री से मांग की कि वे शीघ्र हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित करें। उन्होंने आश्वस्त किया कि इस निर्णय पर संपूर्ण भारत उनके साथ खड़ा रहेगा। देश में कोई भ्रांति नहीं रहनी चाहिए कि कोई प्रांत सरकार के इस निर्णय के विरुद्ध जाएगा। आज सारा भारतवर्ष एक स्वर में मानता है कि हिन्दी ही इस देश की संपर्क भाषा हो सकती है। यही पूरे देश को एक सूत्र में बाँध सकती है।जयंती पर महाकवि केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’ को स्मरण करते हुए डा सुलभ ने उन्हें आधुनिक हिन्दी काव्य का अनमोल गहाना बताया। उनकी काव्य-प्रतिभा ही नहीं काव्य-दृष्टि भी अद्भुत थी। उन्होंने अपने काव्य-कौशल से रामायण की खल-पात्र ‘कैकेयी’ के संदर्भ में चली आ रही प्राचीन मान्यताओं को भी उलट दिया और उसे एक ‘राष्ट्रमाता’ के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। वे बिहार के सहत्यिक गौरव थे।इस अवसर पर वरिष्ठ कवि श्री मार्कण्डेय शारदेय को ‘महाकवि केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’ सम्मान से अलंकृत किया गया तथा उनकी तीन काव्य-पुस्तकों ‘वाग्मिनी’, ‘तत्त्व चिंतन’ तथा ‘दीप शक्तभ’ का लोकार्पण भी किया गया।। सम्मान स्वरूप श्री शारदेय को पुष्पहार, अंग-वस्त्रम,प्रशस्ति-पत्र एवं पाँच हज़ार एक सौ रूपए की राशि प्रदान की गई। यह राशि महाकवि प्रभात की पुत्री रागिनी भारद्वाज के सौजन्य से प्रति वर्ष प्राप्त होती है।आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए,सम्मेलन की साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने कहा कि प्रभात जी पुलिस की कठोर और नीरस सेवा में होते हुए भी सरस काव्य के महान सर्जक थे। हिन्दी काव्य के छायावाद और उत्तर छायावाद काल के वे एक प्रतिनिधि कवि थे। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा सीमा रानी, महाकवि की पुत्रवधू नम्रता कुमारी, ज्ञानवर्द्धन मिश्र डा अर्चना त्रिपाठी, कुमार अनुपम, अंबरीष कांत, जयप्रकाश पुजारी, पं गणेश झा, चितरंजन लाल भारती, श्रीकांत व्यास, बाँके बिहारी साव, अर्जुन प्रसाद सिंह, डा वीरेंद्र कुमार दत्ता, अश्विनी कुमार कविराज तथा डा बी एन विश्वकर्मा ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। मंच का संचालन कवि सुनील उमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।इस अवसर पर अधिवक्ता शिवानंद गिरि, प्रवीर कुमार पंकज, कमल किशोर शर्मा, अमित कुमार सिंह, रीना कुमारी, अमीरनाथ शर्मा, मोहित मयंक झा, दिलशाद, अधिवक्ता शैलेश कुमार सिंह, सुनील कुमार, रमेश कुमार मिश्र, समेत अनेक हिन्दी-सेवी उपस्थित थे।