पटना, १४ सितम्बर। हिन्दी दिवस के अवसर पर, आज से बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में एक सप्ताह के लिए ‘पुस्तक चौदस मेला’ लगा है। इसमें साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रकाशित पुस्तकों के साथ विभिन्न लेखकों की पुस्तकें विक्रय हेतु उपलब्ध कराई गई हैं और अनेक दुर्लभ पुस्तकों और पत्रिकाओं की प्रदर्शनी भी लगी है। पाठकों ने आज ‘धन-त्रयोदशी’ की भावना से पुस्तकों का क्रय किया।पुस्तक मेला का उद्घाटन करते हुए, राजभाषा विभाग में विशेष सचिव और वरिष्ठ कवि डा उपेन्द्र नाथ पाण्डेय ने कहा कि, जिस प्रकार संपूर्ण राष्ट्र ‘स्वतंत्रता-दिवस’ और ‘गणतंत्र दिवस’ के समारोह उत्साहपूर्वक मनाता है, उसी प्रकार संपूर्ण देश को ‘हिन्दी-दिवस’ मनाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता-आंदोलन में हिन्दी का सबसे बड़ा योगदान था। पूरी की पूरी लड़ाई, हिन्दी के नेतृत्व में लड़ी गई। गांधी जी ने सर्वत्र हिन्दी में व्याख्यान दिए। वे मानते थे कि यही भाषा देश को स्वतंत्र भी कराएगी और एक सूत्र से जोड़ेगी।सभा की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि यदि हम हिन्दी और साहित्य से प्रेम करते हैं तो हमें पुस्तकों से प्रेम करना होगा और आम पाठकों का भी इससे प्रेम बढ़े इसके लिए भी प्रयास करना होगा। इसी भाव के साथ हम विगत अनेक वर्षों से प्रत्येक १४ सितम्बर को (हिन्दी दिवस पर) ‘पुस्तक चौदस मेला’ लगाते आ रहे हैं और आग्रह करते रहे हैं कि इस दिन प्रत्येक भारतीय को कम से कम एक पुस्तक का क्रय अवश्य करना चाहिए। अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में भारत की संविधान सभा ने हिन्दी को भारत संघ की ‘राजभाषा’ बनाने का निर्णय लिया था। हिन्दी के समक्ष तब बड़ी चुनौतियाँ थी। किंतु यह भी सत्य है कि हिन्दी के उन्नयन में ग़ैर हिन्दी प्रदेशों ने हिन्दी-पट्टी के राज्यों से अधिक योगदान दिया। दक्षिण में ‘दक्कन’ के नाम से भाषा विकसित हुई, जिसे पहले ऊर्दू का आरंभिक रूप कहा गया, पर वह हिन्दी का ही तत्कालीन व्यावहारिक रूप था। सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, विभा रानी श्रीवास्तव, डा मेहता नगेंद्र सिंह, कुमार अनुपम, चितरंजन लाल भारती, डा मुकेश कुमार ओझा, डा रेखा सिन्हा, कवि जयप्रकाश पुजारी, कौसर कोल्हुआ कमालपुरी, बाँके बिहारी साव, अमरेन्द्र कुमार, अर्जुन प्रसाद सिंह, अलका मिश्र तथा राज किशोर झा ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया। इस अवसर पर, कृष्ण मुरारी, पुरुषोत्तम कुमार, पंकज पाण्डेय, संजय शुक्ला, रामाशीष ठाकुर, चंद्र शेखर आज़ाद, अमन वर्मा, श्री बाबू, अमित कुमार सिंह, प्रभात कुमार, रीना कुमारी, कुमारी मेनका समेत अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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