पटना, २३ सितम्बर। ‘ढीली करो धनुष की डोरी/ तरकश का कस खोलो/ किसने कहा, युद्ध की वेला चली गई, शांति से बोलो? किसने कहा,और मत वेधो हृदय वह्नि के शर से/ भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से? कुंकुम लेपूँ किसे, सुनाऊँ किसको कोमल गान? तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिंदुस्तान/ समर शेष है, नही पाप का भागी केवल व्याध/ जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध।” राष्ट्र्कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की जयंती पर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कवि की इन्हीं पंक्तियों से अपनी बात आरंभ की। उन्होंने कहा कि परिस्थितियाँ आज भी वही है, जब दिनकर जी ने ‘समर शेष है’ नामक अपनी यह बहु-चर्चित और लोकप्रिय कविता लिखी थी। भारत का पीड़ित और भोला समुदाय आज भी आश्वासनों और आशाओं पर जीवित है। स्वतंत्रता के ७४ सालों में, समाज बदल गया, भौतिक समृद्धि भी आई, पर वंचित और भोले लोगों के लिए आज भी ‘पूर्ण-स्वराज’ स्वप्न बना हुआ है। ऐसे में ‘दिनकर’ आज और भी प्रासंगिक लगते हैं। ‘दिनकर’ ओज के, किंतु मानवतावादी राष्ट्र-कवि थे। वे सही अर्थों में अपने समय के ‘सूर्य’ थे। उन्हें स्मरण करना अपनी अस्मिता, पौरुष और राष्ट्रीय-चेतना से जुड़ना है।इस अवसर पर पटना उच्च न्यायालय की अवकाश प्राप्त न्यायाधीश एवं चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, पटना की कुलपति न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र ने, वरिष्ठ पत्रकार और सहारा समाचार सेवा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं संपादक-प्रमुख उपेन्द्र राय को हिन्दी भाषा के उन्नयन में विशिष्ट योगदान के लिए ‘साहित्य सम्मेलन हिन्दी सेवी सम्मान’ से अलंकृत किया। अपने उद्घाटन संबोधन में न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र ने कहा कि, दिनकर जी को हम कभी भूल ही नहीं सकते। जयंती अथवा स्मृति-दिवस पर, हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर जुटाते हैं, अन्यथा हिन्दी और कविता में रूचि रखने वाला कोई व्यक्ति उन्हें कभी भूल नही सकता। वे राष्ट्र्कवि ही नहीं ‘युगकवि’ थे। सम्मानित पत्रकार उपेन्द्र राय ने कहा कि, दिनकर के बाद उनके क़द का दूसरा कोई कवि हुआ ही नही। राष्ट्रकवि को समझना हो तो उनके गद्य ग्रंथ ‘संस्कृति के चार अध्याय’, काव्य-ग्रंथों ”रश्मिरथी’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रेणुका’ और ‘उर्वशी’ के पन्ने पलटने चाहिए। वे युग के प्रतिनिधि कवि हैं। उन्होंने साहित्य सम्मेलन जैसी गौरवशाली संस्था द्वारा सम्मानित होने पर, स्वयं को सौभाग्यशाली बताते हुए, सम्मेलन के प्रति आभार भी प्रकट किया।सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा भूपेन्द्र कलसी, राष्ट्रकवि के पौत्र और कवि अरविंद कुमार सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने तथा धन्ययवाद-ज्ञापन साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने किया। इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ सम्मेलन की कलामंत्री डा पल्लवी मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’, डा शंकर प्रसाद, वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, रमेश कँवल, विजय गुंजन, डा मेहता नगेंद्र सिंह, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, अमियनाथ चटर्जी, चंदन द्विवेदी, स्मृति कुमकुम, डा सुधा सिन्हा, मधुरानी लाल, डा मौसमी सिन्हा, डा अर्चना त्रिपाठी, तलत परवीन, डा महेश राय, अभिलाषा कुमारी, शमा कौसर ‘शमा’, लता प्रासर, शुभ चंद्र सिन्हा, डा विनयकुमार विष्णुपुरी, जय प्रकाश पुजारी, डा शालिनी पाण्डेय, डा सुधा सिन्हा, पंकज प्रियम, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, राज किशोर झा, अर्जुन प्रसाद सिंह, ई अशोक कुमार, डा शकुंतला मिश्र, प्रेम लता सिंह, आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।इस अवसर पर, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, प्रो सुशील कुमार झा, अम्बरीष कांत, चंदा मिश्र, बाँके बिहारी साव, डा कुंदन कुमार, मनन बेनिपुरी, डा अमरनाथ प्रसाद, ज्ञानेश्वर शर्मा, सुरेंद्र चौधरी, चंदा मिश्र, डा रोज़ी कुमारी, कुमार गौरव, सुरेंद्र चौधरी, राज किशोर राय निरंजन, प्रो सुखित वर्मा, नरेंद्र कुमार झा, चंद्रशेखर आज़ाद, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’, राजन सिन्हा, दा विजय कुमार, नूतन सिन्हा, डा पुरुषोत्तम कुमार, श्री बाबू समेत बड़ी संख्या में सुधीजन उपस्थित थे।