पटना, 5 अक्टूबर। महाकवि ब्रजनंदन सहाय ‘मोहन प्रेमयोगी’, हिन्दी के महान समालोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल तथा वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’, तीनों ही, हिन्दी साहित्य के महान रत्न हैं। यह गौरव का विषय है कि हम दो दिवंगत साहित्य-विभूतियों को एक साथ स्मरण करते हुए, करुणेश जी का, उनकी 81 पूर्ति पर, अभिनन्दन कर रहे हैं। महाकाव्य ‘महाशक्ति’, ‘मेनका’, ‘रास-रचैया’, ‘जागरी वसुंधरा’, ‘धरती की पुकार पर’, ‘आह्वान’, ‘गतिगन्धा’, ‘गीति-काव्य’, ‘जीवन-संदेश’, ‘कवि और कविता’, ‘अवदान’ जैसी कालजयी कृतियों के महाकवि ब्रजनंदन सहाय ‘मोहन प्रेमयोगी’ और हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन में अत्यंत मूल्यवान कार्य करनेवाले आचार्य शुक्ल को स्मरण करना साहित्यिक तीर्थाटन की भाँति पुण्य फल दायी है। यह बातें मंगलवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती और अभिनन्दन-समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि करुणेश जी बिहार के अकेले कवि हैं, जिन्होंने गोपाल सिंह नेपाली, दिनकर,प्रभात, जानकी वल्लभ जैसे पूर्ववर्ती पीढ़ी के कवियों, गोपीवल्लभ सहाय, सत्य नारायण, मधुकर, जैसे समकालीन कवियों और वर्तमान युवा कवियों के साथ सस्वर काव्य-पाठ कर रहे हैं। हिन्दी-ग़ज़ल को विशिष्टता प्रदान करने में दुष्यंत समेत जिन कुछ कवियों के नामोल्लेख होते हैं, उनमे करुणेश का नाम भी समादरणीय है। उन्होंने पुष्प-हार, उपहार और अंगवस्त्रम प्रदान कर श्री करुणेश का अभिनन्दन किया तथा उनके दीर्घायुष्य की कामना की। अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि आचार्य शुक्ल के ऐतिहासिक कार्यों की तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती। दूसरी ओर प्रेमयोगी जी यश की लालसा से दूर निरंतर एकांतिक साधना में लीन रहने वाले एक ऐसे मनीषी साहित्यकार थे, जिन्हें हिन्दी काव्य के छायावाद और उत्तर-छायावाद के संधि पर स्थित कीर्ति-स्तम्भ थे।महाकवि के विद्वान पुत्र डा योगेशकृष्ण सहाय ने कहा कि प्रेमयोगी जी संपूर्ण विश्व में हिन्दी के विस्तार के पक्षधर थे। इस हेतु निरंतर सक्रिए भी रहे। उन्होंने ‘विश्व हिन्दी संवर्द्धन समिति’ की भी स्थापना की थी, जिसके माध्यम से उन्होंने हिन्दी के लिए कार्य कर रहे विद्वानों को जोड़ने की चेष्टा की। सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, जियालाल आर्य, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी, प्रो बासुकी नाथ झा तथा अंबरीष कांत ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ महाकवि की पुत्री डा प्रतिभा सहाय ने कवि की वाणी-वंदना “माँ शारदें! विमलांबरे ! आनंद सिंधु विलासिनी!” का सस्वर पाठ कर किया। अभिनन्दित कवि करुणेश ने अपनी ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा कि “अब रहा क्या डर हक़ीक़त जब कहानी हो गई/ हमने जिसको आग समझा था वो पानी हो गई/ रफ़्ता-रफ़्ता काले-काले सारे बादल छँट गए/ आसमां की शक्ल फिर से आसमानी हो गई”। डा शंकर प्रसाद ने इन मधुर पंक्तियों को स्वर दिया कि, “युगों से जो दिलों में धड़कती रहती कहानी फिर वही दोहरा गए बादल!”चर्चित कवयित्री आराधना प्रसाद ने कहा कि “धरा सुशोभित है रंग से और मगन ये गुलशन लुभा रहे हैं/ मिले वो ख़ुशियाँ जो आप चाहें, मचलते जुगनू बता रहे हैं”। शायरा तलत परवीन का कहना था कि “उनकी बातों से यहाँ फैली है घर-घर ख़ुशबू / वह लुटाते हैं बहुत प्यार की हँस कर ख़ुशबू”। वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, आचार्य विजय गुंजन, कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय, कुमार अनुपम, डा मेहता नगेंद्र सिंह, डा अर्चना त्रिपाठी, पं गणेश झा, डा सुलक्ष्मी कुमारी, शुभ चंद्र सिन्हा, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, जयप्रकाश पुजारी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, पंकज प्रियम, शमा कौसर ‘शमा’, अभिलाषा कुमारी, श्रीकांत व्यास, कमल किशोर वर्मा, अरुण कुमार श्रीवास्तव, अर्चना सिन्हा, सूर्य प्रकाश उपाध्याय, अर्जुन कुमार सिंह, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’ तथा अभ्युदय कुमार मिश्र ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। इस अवसर पर महाकवि की पुत्रवधु रुपम सहाय, ज्ञानवर्द्धन मिश्र, बाँके बिहारी साव, प्रो सुखित वर्मा, भी उपस्थित रहे। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।