सियाराम मिश्रा, वरिष्ठ संपादक /वाराणसी का रामेश्वर महादेव मंदिर जहाँ पर संध्या तर्पण के दौरान मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने रेत से की थी शिवलिंग की स्थापना.धर्म नगरी वाराणसी मे हिन्दुओ के अति प्राचीन मंदिरों में एक वरुणा नदी के तट पर स्थित रामेश्वर महादेव मंदिर भी एक प्रमुख मंदिर है, जहां रावणवध के बाद ब्रह्महत्या पाप से मुक्ति की कामना को लेकर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम वरुणा तट पर आए थे और एक रात्रि विश्राम के दौरान उन्होंने संध्या तर्पण में एक मुट्ठी रेत से यहाँ पर शिवलिंग की स्थापना की थी।वाराणसी में रामेश्वर महादेव मंदिर जो की बड़ागांव -जंसा मार्ग पर स्थित है, काशी पंचक्रोशी के तृतीय पड़ाव स्थल पर बसा हुआ है। किसी जमाने में करौंदा वृक्ष की बहुतायतता के कारण इसे ‘करौना’ गांव के नाम से जाना जाता था किन्तु भगवान श्रीराम द्वारा पंचक्रोशी यात्रा में आने पर वरुणा नदी के एक मुठ्ठी रेत से रामेश्वरम की ही भांति ‘शिव की प्रतिमा’ स्थापना और भगवान ‘शिव’ एवम् ‘श्रीराम’ के आरम्भिक मिलन का केंद्र होने से अब इसे रामेश्वर महादेव (रामेश्वर तीर्थ धाम) के नाम से भी जाना जाता है।देश-दुनिया की धार्मिक काशी जिसे लघु भारत के नाम से भी जाना जाता है । वाराणसी में अनेक धार्मिक आस्था के तीर्थ स्थल है । जहां हजारों धर्मावलंबियों का आना सालों साल बना रहता है । वाराणसी जिले के वरूणा नदी के तट पर स्थित रामेश्वरम मंदिर है । जो रामेश्वर ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु में समुद्र के तट पर स्थित रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्रतिकृति है। शिव महापुराण के अनुसार इस ज्योतिर्लिंग को त्रेता युग में भगवान् राम ने स्थापित किया था। काशी खण्ड के अनुसार वाराणसी नगर में दशाश्वमेध मुहल्ले में मान मंदिर के पास स्थित है। यहां पर पापों के विनाश के लिए पंचक्रोशी यात्रा की शुरुआत हुई थी । जब भगवान श्री राम ने कुम्भोदर ऋषि से महा विद्वान् रावण के वध से प्रायश्चित उपाय पर चौरासी कोस की यात्रा करने क्षत्रिय वंश द्वारा ब्राह्मणों की मर्यादा को स्थापित रखने के आदेश पर चौरासी कोस की काशी यात्रा प्रारम्भ की थी। कर्दमेश्वर, भीमचण्डी के बाद रामेश्वर में वरुणा के शांत कछार पर रात्रि भर विश्राम कर भगवान राम ने अपने हाथों एक मुठ्ठी रेत से शिव प्रतिमा की स्थापना कर तर्पण किया, जो स्थान आज पापों का नाश व मनोकामना की पूर्ति का पवित्र स्थल बन गया। यहां प्रति वर्ष हजारों हजार लोग आस्था के साथ जलाभिषेक कर पूजन -अर्चन करते हैं। ‘काशी महात्म्य’ में उल्लिखित कथा के अनुसार -‘एक रात्रेय तू मध्येय प्रविशे छुछि मानसः,वरुणा यासि तटे रम्ये सजाति परमां गतिम्।’वाराणसी में रामेश्वर महादेव धाम दरबार मंदिर धार्मिक आस्था का केंद्र तो है ही लेकिन उसके साथ साथ, मंदिर का कला शिल्प किसी का भी मन मोह लेने के लिए काफी है।18वीं शताब्दी में वरुणा नदी के तट पर स्थित इस दर्शनीय शिवलिंग की विलक्षणता को देखते हुए ग्वालियर के सिंधिया राजघराने के जनकोजी राव सिंधिया ने इसी शिवलिंग पर विशाल मंदिर व वरुणा नदी के तट पर घाट और बारजा का निर्माण करवाना शुरू किए और उनके बाद जीवाजी राव सिंधिया ने इसे पूर्ण करवाया। सिंधिया राजघराने ने ग्वालियर में तराशे गए लाल पत्थरों से मंदिर का निर्माण कराया | सिंधिया राजघराने के अलावा इस मंदिर के सुंदरीकरण मे अहिल्याबाई ने भी अपना योगदान दिया।वाराणसी रामेश्वर तीर्थ धाम में ही महाराष्ट्र के मराठों की देवी मां तुलजा के साथ साथ माँ दुर्गा का भी मंदिर है । जिन्हे कल्याणदायिनी अंबे नाम से भी पुकारा जाता है । जहां पंचकोशी परिक्रमा के दौरान आस्था का जन सैलाब उमड़ता रहता है और दूर-दराज से दुखियारे लोग मत्था टेकने आते हैं। मंदिर परिसर में आदिकालीन पाषाण युग की दुलर्भ मूर्तियां स्थापित हैं। दत्तात्रय जी, राम-लक्ष्मण जानकी, हनुमान, गणेश, नर्सिग, काल भैरव, सूर्य नारायण, साक्षी विनायक विद्यमान हैं।वाराणसी रामेश्वर महादेव तीर्थधाम में भगवान श्रीराम, भरत, शत्रुध्न, लक्ष्मण व हनुमान के हाथों शिवलिंग स्थापित हैं। मंदिर परिसर में सोमेश्वर, अग्नेश्वर, धावाभूमिश्वर नहुषेश्वर, भरतेश्वर, लक्ष्मणोश्वर, शस्त्रुध्नेश्वर, देव पंचायत लिंग (16 शिवलिंग एक साथ) स्थापित हैं। वरुणा तट पर असंख्यात शिवलिंग व झाड़ी महादेव शिवलिंग भी स्थापित है जहां आदिगंगा व वरुणा का जल ताम्र पात्र में बेल पत्र, चंदन, पुष्प, चावल (अक्षत), चढ़ाकर दुग्धविशेष व रुद्राविशेषक की परंपरा है।यहां आतताई औरंगजेब के धर्मान्ध सैनिको ने इस मंदिर को ढहाने का प्रयास किया था पर मंदिर के शक्ति के प्रभाव के आगे भाग खड़े हुये थे |ऐसी मान्यता है कि इस धर्म स्थल पर हाजिरी लगाने वाले की मुराद पूरी होती है। मान्यता है कि रामेश्वर के शिव दरबार में एक दम्पती ने पुत्र रत्न की कामना से यहां आकर पूजन अर्चन किया। जिसकी कामना महादेव की कृपा से पूर्ण हुई। इसको लेकर मार्गशीर्ष प्रतिवर्ष अगहन में छठ पर ‘लोटा -भंटा’ का विशाल मेला लगता है। जिसमें वरुणा नदी में डुबकी लगाने के बाद रामेश्वर महादेव में मत्था टेककर बाटी, चोखा अौर दाल चावल बनाकर भगवान शिव को इसका भोग भी लगाते हैं और प्रसाद एक दूसरे को बांटकर पुण्य की कामना करते हैं। अगहन (मार्गशीर्ष) छठ पर यह मेला लगता है इस मौके पर लाखों आस्थावानों की रामेश्वर महादेव मंदिर में जुटान होती है। लोटा -भंटा मेला पूर्वांचल का सबसे बड़ा मेला है जहां पहुंचकर महाभारत काल के स्थापित पंचशिवाला शिवमन्दिर में भी दर्शन -पूजन किया जाता है।