पटना, १९ अक्टूबर। हिन्दी-भाषा और साहित्य के उन्नयन में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का महान अवदान हमें गौरव के भाव से भर देता है। संपूर्ण भारतवर्ष में हिन्दी भाषा के प्रचार में इसका योगदान अभूतपूर्व है। बिहार के महान हिन्दी साहित्यकारों के साथ भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद और बाबू गंगा शरण सिंह जैसे देश के महान नेता भी सम्मेलन के हिन्दी प्रचारकों में सम्मिलित थे। यह बातें मंगलवार को सम्मेलन के १०३वें स्थापना दिवस समारोह का उद्घाटन करते हुए, भारत के खाद्य, वन और पर्यावरण राज्यमंत्री अश्विनी चौबे ने कही। उन्होंने कहा कि देश की जिन साहित्यिक विभूतियों और हिन्दी-प्रेमियों ने इसके चतुर्दिक प्रचार और उन्नति के लिए मूल्यवान कार्य किए, उनमें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से जुड़े महान साहित्यकारों का योगदान अत्यंत महनीय है। हिन्दी की इस महान सेवा के लिए, हमें भारत के प्रथम राष्ट्रपति देश रत्न डा राजेंद्र प्रसाद जी, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’, महापंडित राहुल सांकृत्यायन, आचार्य शिवपूजन सहाय, राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह, आचार्य रामवृक्ष बेनीपुरी, डा काशी प्रसाद जायसवाल, बाबू गंगा शरण सिंह , श्री भवानी दयाल सन्यासी, महाकवि रामदयाल पाण्डेय आदि महापुरुषों का श्रद्धा से स्मरण होता है, जो अलग-अलग समय में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे।श्री चौबे ने कहा कि समाज में गुणात्मक परिवर्तन साहित्य के द्वारा हीं संभव होता है। साहित्य हीं मानव को ‘मनुष्य’ बना सकता है। इसके अभाव में मनुष्य, मनुष्यता से दूर, संस्कार-हीन और असामाजिक हो जाता है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के इस संकल्प का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि देश की अपनी ‘एक राष्ट्र-भाषा’ अवश्य होनी चाहिए और वह ‘हिन्दी’ ही हो सकती है। इसमें सहायक होकर हमें प्रसन्नता और गौरव की अनुभूति होगी। इस अवसर पर श्री चौबे ने कुल २५विदुषियों और विद्वानों को ‘साहित्य-मार्तण्ड’, साहित्य-चूड़ामणि’ और ‘साहित्य-शार्दूल’ अलंकरणों से सम्मानित किया। समारोह के मुख्य अतिथि और बिहार के उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने, विदुषी लेखिका पूनम आनंद के लघुकथा-संग्रह’कौफ़ी टाइम्स’ का लोकार्पण किया। उपने संबोधन में उपमुख्यमंत्री ने कहा कि साहित्य सम्मेलन ने केवल हिन्दी साहित्य का ही संवर्द्धन नहीं किया अपितु स्वतंत्रता-आंदोलन में भी इसकी बड़ी भागीदारी हुई। जैसा त्याग और बलिदान स्वतंत्रता सेनानियों का है, वही त्याग और बलिदान हिन्दी के साहत्यकारों का हैं। यह सम्मेलन एक साहित्यिक-तीर्थ सा स्थान रखता रहा है।आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, स्वागत समिति के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा सीपी ठाकुर ने माननीय मंत्री से आग्रह किया कि वे साहित्य सम्मेलन के संकल्प को पूरा करने हेतु भारत के प्रधानमंत्री के सामने हमारा वकील बनें।अपने अध्यक्षीय संबोधन में, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने सम्मेलन के १०२ वर्षों के गौरवशाली इतिहास का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि बहुत विलंब हो चुका, अब भारत के राष्ट्रीय ध्वज की भाँति हिन्दी को देश की ‘राष्ट्रभाषा’ घोषित की जाए।बिहार के पुलिस महानिदेशक (प्रशिक्षण) आलोक राज, विश्वविद्यालय सेवा आयोग, बिहार के पूर्व अध्यक्ष प्रो शशिशेखर तिवारी, पटना विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति डा एस एन पी सिन्हा तथा मधेपुरा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो अमरनाथ सिन्हा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद और साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने किया।उद्घाटन-सत्र के पश्चात सम्मेलन के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ की अध्यक्षता में एक भव्य कवि-सम्मेलन का भी आयोजन हुआ, जिसमें देश के विभिन्न प्रांतों और बिहार के ४० से अधिक कवियों ने अपना काव्य-पाठ किया। काव्य-पाठ कारने वालों में,चर्चित कवि मनीष मधुकर, आराधना प्रसाद, डा प्रतिभा परासर, डा जंग बहादुर पाण्डेय, डा रजनी शर्मा, डा प्रतिभा स्मृति, शमा कौसर ‘शमा’,कौसर कोल्हुआ कमालपुरी, अनिता मिश्र सिद्धि, शुभ चंद्र सिन्हा, ऋतु प्रज्ञा, डा मौसमी सिन्हा, नूतन सिन्हा, अभिलाषा कुमारी, मोईन गिरीडीहवी, आनंद किशोर मिश्र, प्रियेश सिंह, नंदन मिश्र, राम सिंगार ‘मलक’, अंकेश कुमार, शंकर शरण आर्य, कमल किशोर वर्मा ‘कमल’, डा अलका वर्मा, माहेश राय, जितेंद्र मिश्र, मंजू शुक्ला, रजनी श्रीवास्तव, लता परासर, राज किशोर वत्स, राजीव शर्मा सम्मिलित हैकविसम्मेलन का संचालन आचार्य विजय गुंजन ने किया।समारोह के अंत में, सम्मेलन के कला-विभाग की ओर से, कलामंत्री डा पल्लवी विश्वास और पं अविनय काशी नाथ पाण्डेय के निर्देशन में, कविगुरु रवींद्रनाथ ठाकुर रचित और पं हंस कुमार तिवारी द्वारा अनूदित नृत्य-नाटिका ‘श्यामा’ की चित्ताकर्षक प्रस्तुति की गई। भाग लेने वाले कलाकारों में आयुर्मान यास्क, रविचंद्र ‘पासवाँ’, रौशन महाराज, शशिकांत शर्मा, गायत्री ऋतिका, काशिका पाण्डेय, कविता तथा गुड्डी की प्रस्तुति को एक स्मृति के रूप में लेकर सुधी श्रोता विदा हुए। इस अवसर पर, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, डा कल्याणी कुसुम सिंह, अभिजीत कश्यप, प्रो बासुकी नाथ झा, सुनील कुमार दूबे, कृष्णरंजन सिंह, डा शलिनी पाण्डेय, डा पुष्पा जमुआर, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, जय प्रकाश पुजारी, कुमार अनुपम, संजीव कुमार मिश्र, डा मेहता नगेंद्र सिंह कुमारी क्रांति समेत बड़ी संख्या में सम्मेलन के सदस्य एवं साहित्यकार उपस्थित थे।सम्मानित हुए विद्वानों एवं विदुषियों की सूचि;-साहित्य मार्तण्ड१) प्रो महेन्द्र मधुकर २) प्रो सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह कश्यप३) डा शंकरमुनि राय४) श्री बाबू लाल मधुकर५) डा सुरेंद्र प्रसाद मिश्र६) श्री राजमणि मिश्र७ ) श्री कृष्ण चंद्र दूबेसाहित्य चूड़ामणि१) डा पुष्पा रानी२) डा कल्याणी कबीर३) डा अनिता शर्मा ४) श्रीमती किरण सिंह५) श्रीमती पूनम आनंद६) डा शहनाज़ फ़ातमी७) डा रीभा तिवारी८) डा संजू कुमारी९) डा ममता मिश्र १०) श्रीमती सरिता कुमारी११) मेरी आडलीन,साहित्य शार्दूल१) डा सत्य नारायण उपाध्याय२) डा संजय पंकज३) डा दिनेश कुमार शर्मा४) श्री हरिवंश प्रभात५) श्री पंकज कुमार वसंत६) पं बाल कृष्ण उपाध्याय७) श्री विनोद सिंह गहरवाल.