पटना, २३ अक्टूबर। मानसिक समस्याओं से जूझ रहे व्यक्तियों का उपचार और पुनर्वास, दुनिया भर के पुनर्वास-वैज्ञानिको और चिकित्सकों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है। दिव्यांगता के विभिन्न समस्याओं में, इस प्रकार की समस्याएँ सबसे अधिक कठिन होती हैं। ऐसे रोगी या मानसिक विकालांग पूरी तरह अपने परिजनों, चिकित्सकों और पुनर्वास-विशेषज्ञों पर निर्भर होते हैं। इस लिए इनके प्रबंधन हेतु इन सबका संयुक्त प्रयास आवश्यक है। पुनर्वास-दल के सभी सदस्य मिलकर ही इसका निदान निकाल सकते हैं। यदि निष्ठापूर्वक प्रयास हुए तो ऐसे रोगियों का बहुत हद तक पुनर्वास संभव हो सकता है।यह बातें, भारतीय पुनर्वास परिषद के सौजन्य से, बेउर स्थित इंडियन इंस्टिच्युट औफ़ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च द्वारा “ऐडवांस न्यूरो-कोग्निटिव कम्यूनिकेशन डिजौर्डर: ऐसेसमेंट ऐंड मैनेजमेंट” विषय पर आयोजित तीन दिवसीय वेबिनार का उद्घाटन करते हुए, अलियावर जंग नेशनल इंस्टिच्युट औफ़ स्पीच ऐंड हियरिंग, मुंबई के पूर्व निदेशक डा अशोक कुमार सिन्हा ने कही। डा सिन्हा ने कहा कि ऐसे रोगियों की नियमित थेरापी आवश्यक है। क्रम टूटने अथवा लम्बे अंतराल से प्रगति बाधित होती है।उद्घाटन-सत्र की अध्यक्षता करते हुए, संस्थान के निदेशक-प्रमुख डा अनिल सुलभ ने कहा कि ‘न्यूरो-कोग्निटिव कम्यूनिकेशन डिजौर्डर’ एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या है। पूरी दुनिया में इस तरह के मामले चिन्हित हुए हैं। इसलिए इस विषय पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा अपेक्षित थी। अनेक देशों से जुड़े पुनर्वासकर्मी अपने अनुभवों को बाँट कर इस वेबिनार में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। वेबिनार के पहले दिन न्यू गुआना के पोर्ट एम पपुआ स्थित पैसिफ़िक इंटरनेशनल हौस्पीटल की क्लिनिकल साइकोलौजिस्ट डा बंदिता गोगोई, सउदी अरब के किंग अब्दुल अज़ीज़ यूनिवर्सिटी, जद्दा में क्लिनिकल साइकोलौजिस्ट डॉक्टर सराह अज़ीज़ खान, टाटा मेन हौस्पिटल जमशेदपुर की नैदानिक मनोवैज्ञानिक डा हर्षिता विश्वास, देवा मेंटल हेल्थ केयर, वाराणसी की नैदानिक मनोवैज्ञानिक डा नूर शबीना, डा नीरज कुमार वेदपुरिया, डा अजय कुमार मिश्र ने अपने वैज्ञानिक-पत्र प्रस्तुत किए। वेबिनार के समन्वयक प्रो कपिलमुनि दूबे तथा नीरज तिवारी ने तकनीकी सहयोग दिया। भारत सहित, अमेरिका, रूस, औस्ट्रेलिया, सउदी अरब, दुबई, बंगलादेश आदि देशों के कुल २५० निबंधित प्रतिभागी वेबिनार में हिस्सा ले रहे हैं।