पटना, २५ अक्टूबर। विशेषज्ञ पुनर्वास-वैज्ञानिकों द्वारा नियमित थेरापी, स्पीच थेरापी तथा पुनर्वास-दल के सामूहिक प्रयास से मानसिक-विकलांगता से पीड़ित व्यक्तियों का पुनर्वास संभव है। यह एक लम्बी प्रक्रिया है। किंतु यह असंभव नहीं है। यह बातें भारतीय पुनर्वास परिषद, भारत सरकार के सौजन्य से, बेउर स्थित इंडियन इंस्टिच्युट औफ़ हेल्थ एजुकेशन ऐंड रिसर्च में “ऐडवांस न्यूरो कौग्निटिव कौम्यूनिकेशन डिसौर्डर्स : ऐसेसमेंट ऐंड मैनेजमेंट” विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार के अंतिम दिन पुनर्वास वैज्ञानिकों ने व्यक्त किए।वरिष्ठ नैदानिक मनोवैज्ञानिक डा इशा सिंह ने कहा कि मानसिक अवसादों से व्यथित रोगियों के साथ, परिजनों का व्यवहार सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। उनके साथ हो रहे वर्ताव का उन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मानसिक अवसाद अन्य अनेक रोगों को जन्म देता है। अस्तु इससे शीघ्र मुक्ति प्राप्त करना नितांत आवश्यक है।संस्थान के निदेशक-परमूख डा अनिल सुलभ की अध्यक्षता में संपन्न हुए इस वेबिनार में, गुरुग्राम की चर्चित क्लिनिकल साइकोलौजिस्ट डा प्रीति अर्पिता, राजकीय मानसिक अस्पताल, अमृतसर की मनोवैज्ञानिक डा राधिका सहल, असम डॉन बासको यूनिवर्सिटी के सहायक प्राध्यापक डा जॉयदीप दास, संस्थान के ऑडियोलौजी ऐंड स्पीचपैथोलौजी विभाग के अध्यक्ष डा अजय कुमार मिश्र, विशेष शिक्षा विभाग के अध्यक्ष प्रो कपिलमुनि दूबे ने भी अपने वैज्ञानिक-पत्र प्रस्तुत किए। तकनीकी सहयोग डा नीरज तिवारी तथा डा नीरज कुमार वेदपुरिया ने और कार्यक्रम के विविध खंडों का संचालन कुमारी अंजलि, सोनाली तथा मुस्कान ने किया।