पटना, ३० अक्टूबर। “सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसबा से मोरे प्राण बसे हिम खोह रे बटोहिया” जैसी प्राण-प्रवाही और मर्म-स्पर्शी रचना के अमर रचयिता बाबू रघुवीर नारायण भोजपुरी और हिन्दी के महान कवि ही नहीं एक वलिदानी देश-भक्त और स्वतंत्रता सेनानी भी थे। ‘बटोहिया-गीत’ से अत्यंत लोकप्रिय हुए इस महान कवि ने घूम-घूम कर देश में स्वतंत्रता का अलख-जगाया और यह गीत गा-गा कर, संपूर्ण भारत-वासियों को, विशेष कर समग्र पूर्वांचल को, उसकी गौरवशाली प्राचीन संस्कृति और महानता का स्मरण दिलाया। पूर्वी-धुन पर रचित यह गीत अपने काल में बिहार और उत्तरप्रदेश के स्वतंत्रता-सेनानियों के जिह्वा पर देश के ‘राष्ट्रीय-गीत’ की तरह चढ़ा रहा। पूर्वी भारत में आज भी इसकी मान्यता ‘राष्ट्रीय गीत’ के रूप में है।यह बातें शनिवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, बाबू रघुवीर नारायण की १३८वीं जयंती पर आयोजित समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, एक भी महान और लोकप्रिय रचना किसी कवि को साहित्य-संसार में अमर कर सकती है। ‘बटोहिया गीत’ और बाबू रघुवीर नारायण आज के कवियों के लिए अत्यंत मूल्यवान दृष्टांत हैं।समारोह के उद्घाटन कर्ता और राज्यसभा के पूर्व सदस्य रवींद्र किशोर सिन्हा ने इस अवसर पर, डा पंकज वासिनी के भोजपुरी काव्य-संग्रह ‘नवजात दिनकर भरे किलकार’ का लोकार्पण किया। अपने उद्गार में उन्होंने कहा कि बाबू रघुवीर नारायण ने भोजपुरी गीतों का साहित्यिकी कारान किया। इसके पूर्व भोजपुरी में लोक-उत्सवों से संबंधित गीत गाए जाते थे। उन्होंने कहा कि रघुवीर नारायण के भोजपुरी साहित्य पर विश्वविद्यालयों में शोध होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि शोध कार्य में सहायक होकर उन्हें प्रसन्नता होगी। विश्वविद्यालय सेवा आयोग, बिहार के अध्यक्ष डा राजवर्द्धन आज़ाद ने कहा कि रघुवीर नारायण जैसे महान कवि को अवश्य ही पद्म-अलंकरण से विभूषित करना चाहिए। कवि की पौत्र-वधु उर्मिला नारायण ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, उनके जीवन से जुड़े महत्त्वपूर्ण प्रसंगों की विस्तार से चर्चा की और कहा कि, भोजपुरी भाषी क्षेत्रों में राष्ट्रीयता का भाव जगाने में, ‘बटोहिया-गीत’ की बड़ी भूमिका रही। इस गीत की चर्चा भारत की सीमाओं से आगे निकल कर मौरिशस, सूरिनाम, फ़ीजी, त्रिनिदाद, टोबैगो तक पहुँची, और वहाँ के लोग भाव-विभोर होकर यह गीत सुना करते थे। उन्होंने महात्मा गांधी और नेहरु जी को भी यह गीत सुनाया था। गांधी जी आग्रह पूर्वक इसे सुना करते थे। उनकी आँखें भर आती थी। उनके सारस्वत गुणों से प्रभावित होकर बनैली के महाराज कीर्त्यानंद सिंह ने उन्हें अपना निजी सचिव बना रखा था। उन्हीं की प्रेरणा से कीर्त्यानंद जी ने साहित्य सम्मेलन के भवन के निर्माण में एक मुश्त दस हज़ार रूपए की राशि प्रदान की थी। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन की साहित्य मंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने किया। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, कवि के प्रपौत्र डा धीरज सिन्हा, डा बी एन विश्वकर्मा, अम्बरीष कांत तथा डा पुष्पा जमुआर ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।आरंभ में सूचर्चित गायिका मनीषा श्रीवास्तव ने ‘बटोहिया-गीत’ का सस्वर पाठ किया। इस अवसर पर आयोजित लोकभाषा कवि-सम्मेलन में,वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, पं गणेश झा (दोनों मैथिली में ), डा विनय कुमार विष्णुपुरी (बज्जिका), पूनम आनंद,जय प्रकाश पुजारी, कमल किशोर वर्मा ‘कमल’ (भोजपुरी), ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, श्रीकांत व्यास (अंगिका), डा पुष्पा जमुआर, डा रविशंकर शर्मा, प्रो राम नन्दन ने, पूजा ऋतुराज, (मगही में) काव्य-पाठ किया। डा अर्चना त्रिपाठी, पंकज प्रियम, अनिल कुमार झा, शमा कौसर, डा कुंदन आनंद, अर्जुन प्रसाद सिंह ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।