पटना, २ नवम्बर। ९२ वर्ष की आयु में शरीर छोड़ने वाले वयोवृद्ध कवि और बी एस कौलेज दानापुर के संस्थापक प्राध्यापक प्रो रामचंद्र मिश्र ‘मधुप’ एक सिद्धहस्त कवि ही नहीं, एक सौम्य शिक्षाविद और उदार समाजसेवी थे। वे उस पीढ़ी के व्यक्ति थे, जिस पीढ़ी ने समाज के लिए बलिदान देना सिखा था। उनके निधन से साहित्य और शिक्षा जगत को बड़ी क्षति पहुँची है।यह बातें मंगलवार को साहित्य सम्मेलन मे आयोजित एक शोक-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि मधुप जी यों तो मनोविज्ञान के प्राध्यापक थे, किंतु हिन्दी भाषा और साहित्य पर उनका गहरा अधिकार था। उनकी भाषा प्रांजल, त्रुटि-हीन और लालित्यपूर्ण थी। वे ओजस्वी वक्ता और मनीषी सामाजिक चिंतक थे। सासाराम के नोखा प्रखण्ड अंतर्गत सिरखिंडा ग्राम के मूल निवासी श्री मधुप की उच्च शिक्षा बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से हुई थी और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर इनके सह-पाठियों में थे। शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका विशेष योगदान रहा। उन्होंने अपने ग्राम में ही एक महाविद्यालय की स्थापना की। देहरादून में भी उन्होंने’विद्या निकेतन’ नामक एक विद्यालय की स्थापना की, जो देश में ख्यातिनाम विद्यालयों में गिना जाता है। मधुप जी विगत दशकों से दानापुर में ही निवास करते थे। शोक-गोष्ठी में वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, आचार्य विजय गुंजन, कृष्ण रंजन सिंह, बाँके बिहारी साव, डा शालीनी पाण्डेय, डा अर्चना त्रिपाठी,प्रणब कुमार समाजदार, श्रीबाबू आदि साहित्याकारों ने अपने शोकोदगार व्यक्त किए। स्मरणीय है कि गत ३१ अक्टूबर को प्रो ‘मधुप’ का दानापुर में निधन हो गया।