प्रिया की रिपोर्ट /वाल्मीकिनगर के समीप से निकलने वाली नारायणी नदी में 3 नदियों का संगम होता है। सोनभद्र, तमसा और नारायणी नदी का संगम हिंदू धर्म में काफी पवित्र माना जाता है। इसलिए नारायणी में छठ महापर्व करने का महत्व और बढ़ जाता है। छठ व्रत करने वाले यह मानते हैं कि छठ महापर्व है। लेकिन, नारायणी नदी के तट पर छठ पर्व करने से इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। हिमालय से निकलकर नेपाल के रास्ते वाल्मीकिनगर होकर पटना के पास गंगा में समाहित होने वाली नारायणी नदी का पुराण-ग्रंथों में भी जिक्र है।हिमालय पर्वत शृंखला के धौलागिरि पर्वत के मुक्तिधाम से निकली गंडक नदी गंगा की सप्तधारा में से एक है। इस नदी को बड़ी गंडक, गंडकी, शालिग्रामी, नारायणी, सप्तगंडकी आदि नामों से जाना जाता है। लंबे सफर में तमाम धार्मिक स्थल हैं। इसी नदी में महाभारत काल में गज और ग्राह (हाथी और घड़ियाल) का युद्ध हुआ था, जिसमें गज की गुहार पर भगवान कृष्ण ने पहुंचकर उसकी जान बचाई थी।जरासंध वध के बाद पांडवों ने इसी पवित्र नदी में स्नान किया था। भगवान विष्णु के जिस शालिगराम रूप की पूजा होती है। वह विशेष पत्थर (ठाकुर जी) इसी नारायणी (गंडक) में मिलता है। इसलिए इस नदी में छठ व्रत करना उत्तम माना जाता है।यहां मां सीता ने भी छठ किया थावाल्मीकी रामायण के अनुसार श्रीराम जब 14 वर्ष वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया। तभी से छठ व्रत पूजा किया जाता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी मां सीता ने 6 दिनों तक रह कर छठ पूजा की थी। जिसके बाद बिहार में छठ पर्व की शुभ आरंभ हुई। ऐसा पौराणिक मान्यता है कि मां सीता अयोध्या से निकलने के बाद भारत-नेपाल बॉर्डर पर स्थित वाल्मीकि आश्रम में रहीं।उस दौरान उन्होंने वाल्मीकिनगर में भी छठ महापर्व किया। वाल्मीकि नगर में नारायणी नदी के तट पर लव-कुश घाट पर आज भी लोग छठ पर्व धूमधाम से मनाते हैं। इतना ही नहीं नारायणी नदी यानी गंडक जहां-जहां से निकलती है आसपास के क्षेत्र के लोग नारायणी नदी के तट पर ही छठ का महापर्व मनाते हैं।वाल्मीकि नगर से लेकर सोनपुर तक नारायणी नदी के किनारे श्रद्धालु जुटते हैं।वाल्मीकि नगर से जैसे ही नारायणी आगे बढ़ती है और जहां-जहां रिहायशी इलाका मिलता है, छठ करने वाले छठ व्रती नारायणी नदी के तट पर ही छठ करते हैं। छठ पूजा को देखते हुए बगहा में कई ऐसी जगह हैं जहां घाट पर मंदिर का निर्माण कर दिया गया है। ऐसे ही बगहा में एक घाट है, जिसे लोग कालीघाट के नाम से जानते हैं। यहां के लोग बताते हैं कि छठ पर्व को लेकर इस घाट पर मां गंगा की एक प्रतिमा स्थापित की गई है। जो भी लोग यहां छठ व्रत करने आते हैं, वह मां गंगा के प्रतिमा को प्रणाम कर आशीर्वाद लेकर छठ पूजा करते हैं।