सोमा राजहंस,अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के काबिज होते ही ड्रैगन ने अफगानिस्तान के अकूत खजाने पर कब्जा करने के लिए अपनी चालें चलनी शुरू कर दी हैं। चीन ने तालिबान को अफगानिस्तान में पुननिर्माण करने का लालच दिया है। तालिबान जानता है कि वो बंदूक के दम पर सत्ता ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रख सकता है, लिहाजा वो चाहेगा कि अफगानिस्तान में विकास के प्रोजेक्ट लॉंच कर वो लोगों के दिलों में जगह बनाए और चीन से बड़ा साथी उसे कोई और मिल नहीं सकता है। और चीन इसी मौके की ताक में है। दरअसल, अमेरिकन जियोलॉजिकल सोसायटी के सर्वेक्षण ने अफगानिस्तान के अंदर एक सर्वेक्षण शुरू किया था। 2006 में अमेरिकी शोधकर्ताओं ने चुंबकीय गुरुत्वाकर्षण और हाइपरस्पेक्ट्रल सर्वेक्षणों के लिए हवाई मिशन भी किए थे। जिसमें पता चला था कि अफगानिस्तान में अकूत मात्रा में लोहा, तांबा, कोबाल्ट, सोना के अलावा औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण लिथियम और नाइओबियम के विशालकाय खनिज मौजूद है। ये ऐसे खनिज हैं, जो रातों रात किसी भी देश की तकदीर को हमेशा के लिए बदल सकते हैं।चीन की सरकार की तरफ से अपने देश के लोगों को कहा है कि ”इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन तालिबान को मान्यता देने में कोई खराबी नहीं है और चीन के लोगों को तालिबान को मान्यता देने के लिए तैयार हो जाना चाहिए”। इसके साथ ही ग्लोबल टाइम्स ने चीन के उन लोगों को धमकाते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ”जो लोग तालिबान को मान्यता देने के खिलाफ हैं, वो अपना मुंह बंद करके बैठें, क्योंकि उन्हें विदेश नीति की समझ नहीं है”। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि ”पश्चिम देशों से कुछ आवाजें आ रही हैं कि अमेरिका के अफगानिस्तान से पीछे हटनमे के बाद चीन बड़ी भूमिका निभाएगा और चीन अपनी सेना को अफगानिस्तान में भेज सकता है, तो चीन ये साफ कर चाहता है कि ये तमाम बातें पूरी तरह से अफवाह और निराधार हैं”।तालिबान को बड़ा ऑफर देते हुए कहा है कि वो अफगानिस्तान के पुननिर्माण में एक बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार है। चीन ने कहा है कि ”यनि अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर मानवीय संकट पैदा होता है, या युद्ध के बाद के पुनर्निर्माण और विकास में योगदान की जरूरत पड़ती है, तो चीन अपने प्रस्तावित बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई प्रोजेक्ट) के तहत अफगानिस्तान में अपनी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के तैयार है”। यानि, चीन ने साफ कर दिया है कि वो अफगानिस्तान में आने के लिए तैयार है और पुननिर्माण के लिए तालिबान को मान्यता देने के लिए तैयार है। जाहिर है, चीन ने बीआरआई प्रोजेक्ट का नाम सबसे पहले लिया है, यानि साफ है कि चीन को अफगानिस्तान से नहीं, बल्कि अपने प्रोजेक्ट से मतलब है और वो तालिबान से दोस्ती कर अपने प्रोजेक्ट को फाइनल करना चाहता है।सब खनिजों में से लिथियम को काफी दुर्लभ माना जाता है। लिथियम की मांग के कारण अफगानिस्तान को ‘सऊदी अरब’ भी कहा जाता है। दरअसल, लैपटॉप और मोबाइल की बैटरी में लिथियम का इस्तेमाल होता है। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने ही कहा था कि अफगानिस्तान का लिथियम सऊदी अरब के तेल के भंडार की तरह है। जलवायु परिवर्तन को देखते हुए यह तय है कि आने वाले वक्त में जीवाश्म ईंधन की जगह इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मांग काफी ज्यादा बढ़ने वाली है। ऐसे में लिथियम जैसे खनिजों की भारी मौजूदगी अफगानिस्तान की किस्मत हमेशा हमेशा के लिए बदल सकती है, बशर्ते उसका सही तरीके से इस्तेमाल हो और वो इस्तेमाल अफगानिस्तान के अंदर बनने वाली सरकार करे। उसपर किसी बाहरी शक्ति का नियंत्रण ना हो। चीन इस बात जो जानता है और वो तालिबान को समर्थन देकर लीथियम के खजाने को लूटना चाहता है।इसके साथ ही अफगानिस्तान में नरम धातु नाइओबियम भी पाया जाता है, जिसका उपयोग सुपरकंडक्टर स्टील बनाने के लिए किया जाता है। और आपको बता दें कि सुपरकंडक्टर कितना जरूरी है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इस साल फरहरी महीने में 2 महीने के लिए एक नामी कार कंपनी को सुपरकंडक्टर के अभाव की वजह से अपना प्रोडक्शन बंद करना पड़ा था। इतने दुर्लभ खनिजों की मौजूदगी के कारण यह माना जाता है कि आने वाले समय में दुनिया तेजी से खनन के लिए अफगानिस्तान की तरफ रुख करेगी। अब तक अमेरिका यहीं बना हुआ था और उसने एक तरह से अफगानिस्तान की खनिज संपदा की रक्षा ही की है, लेकिन अब चीन ने अफगानिस्तान की तरफ देखना शुरू कर दिया है।
चीन अफगानिस्तान में मौजूद दुर्लभ खजाने को हासिल करने के लिए करीब 62 अरब डॉलर की बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत अफगानिस्तान तक सीपीसी यानि चीन पाकिस्तान कॉरिडोर का विस्तार करने की कोशिश काफी तेज कर दी है। एक बार अगर बेल्ट एंड रोड परियोजना बन जाता है, तो फिर अफगानिस्तान की खनिज संपदा को चीन के हाथ में जाने से कोई नहीं रोक सकता है। क्योंकि, सब जानते हैं कि अफगानिस्तान के अंदर मची लड़ाई का फायदा उठाने में चीन कोई कमी नहीं करेगा।