शैलेश तिवारी,कंसल्टिंग एडिटर /टी वी पत्रकारिता में एक ख़ास पहचान बना चुके लेखक नीलांशु रंजन का दूसरा उपन्यास ” फ़ासले- दर- फ़ासले ” प्रलेक प्रकाशन, दिल्ली व मुंबई से प्रकाशित होकर अभी- अभी आया है. विवाहेतर प्रेम पर आधारित नीलांशु रंजन का पहला उपन्यास भी काफ़ी चर्चे में रहा और लोगों ने इसे ख़ूब पसंद किया. यह नया उपन्यास ” फ़ासले- दर- फ़ासले ” साम्प्रदायिक दंगे पर आधारित है और साथ में एक प्रेम कहानी भी है. वैसे भी नीलांशु रंजन के उपन्यास में मुहब्बत न हो, यह कैसे हो सकता है? साम्प्रदायिक दंगे की पृष्ठभूमि पर लिखा गया यह उपन्यास सियासत के खेल को इस तरह नंगा करता है कि आप हैरान रह जाएंगे. हिन्दूत्व और इस्लाम के नाम पर किस तरह एक नये राष्ट्र प्रेम की परिभाषा गढ़ी जा रही है, उसका भयानक रूप से पर्दाफ़ाश करता है यह उपन्यास. उपन्यास में एक जगह दिखलाया गया है कि किस तरह मज़हब, इस्लाम व शरियत के नाम पर युवा मुस्लिम लड़कों को भड़काया जाता है मौलानाओं द्वारा और किस तरह वे हिन्दूओं का क़त्ल करते हैं.वहीं दूसरी ओर एक हनुमान भक्त सिपाही लाल चंदन लपेसे हनुमान चालीसा पढ़ते हुए एक बुर्क़ा पोश मुस्लिम महिला का बलात्कार करता है हवलदार के साथ मिलकर. एक- एक संवाद हमें सोचने के लिए मजबूर करता है. एक जगह नायक बजरंग दल और हिन्दू समर्थकों से घिर जाता है और वे लोग उसकी पैंट खोलकर देखने को तैयार हैं कि उसका खतना किया हुआ है या नहीं? पुलिस प्रशासन पर भी प्रहार है कि किस तरह सत्ताधारियों के आदेश पर वे हिन्दू बहुल इलाक़े की रक्षा करते हैं. चुनाव में एक ख़ास दल की जीत होती है और पूरे वातावरण में श्रीराम के नारे की गूँज सुनाई पड़ती है.नायिका के ज़रिए मुस्लिम कट्टरपन को दिखलाया गया है. प्रेम कहानी में भी कई मोड़, कई घुमाव है…