कौशलेन्द्र पाराशर की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट/ पटना में भी ऐसे समाज के मसीहा लोग रहते हैं जिनको अपने हाथों से गरीबों को खाना खिला कर आनंद आता है. मुखिया से लेकर प्रधानमंत्री तक गरीबों को मदद की बात तो करते हैं. लेकिन जब आप ग्राउंड रूट पर जाएंगे तो पाएंगे कि गरीबी जस का तस है.गरीबी मिटाने वालों को नारा देने वालों को क्या यह पता नहीं चल पाता है की गरीबी मिटाने के लिए एक इच्छाशक्ति की जरूरत होती है जो नीचे पायदान पर आने वाले लोगों के पास नहीं है. मैं अपने कार्यालय इनकम टैक्स से जब अपने घर की ओर लौट रहा था तो एक ऊर्जावान युवा को देखा. अपनी गाड़ी से उतर कर गरीब बच्चों को खाना खिला रहे थे. जब उनसे मैंने बात किया कि आप ऐसा क्यों करते हैं गरीब बच्चों को इतनी रात को आप खाना खिलाने पहुंचे हैं. मैंने उनसे पूछा आप क्यों खाना खिला रहे हैं. यह तो काम सरकार और नगर निगम का है. उन्होंने बहुत ही सधे हुए शब्दों में जवाब दिया. इन बच्चों को खाना खिला कर जो आनंद मिलता है. सच में वैसा आनंद मुझे कभी प्राप्त नहीं होता है. मैंने उन्हें धन्यवाद दिया और कहा आप हमारे समाज से प्रेरणा हैं युवाओं के लिए आप एक सोच है. अगर युवा ऐसा सोच ले तो गरीबी निश्चित रूप से अपने बिहार और देश से मिट पाएगा.