पटना, ४ दिसम्बर। विदुषी कवयित्री और दिल्ली उच्च न्यायालय में अधिवक्ता कामिनी श्रीवास्तव की कविताएँ नारी-चेतना को नूतन स्वर देती हैं। इनकी कविताओं में एक सुकुमार कवयित्री की कोमल भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति मिलती है। कामिनी जी काव्य-कल्पनाओं से संपन्न एक प्रतिभावान कवयित्री हैं।यह बातें शनिवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में ब्रजेंद्र श्रीवास्तव स्मृति न्यास के तत्त्वावधान में आयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह एवं कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि अपनी कविता ‘द्रौपदी’ में कवयित्री ने यह प्रश्न उठाकर कि क्या कोई स्त्री पाँच पति रख सकती है?, समाज के समक्ष एक बड़ी चुनौती रखी है। कविताएँ छंद मुक्त हैं,पर उनमें भाव और काव्य-कल्पनाएँ मनोहारी हैं।समारोह की मुख्य अतिथि तथा चाणक्य राष्ट्रीय विधिविश्वविद्यालय की कुलपति न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र ने कहा कि कामिनी जी की यह पहली काव्यकृति है। अधिवक्ता के व्यस्तकारी जीवन में भी अवकाश निकाल कर इन्होंने अपने भावों और संवेदनाओं को कोमल अभिव्यक्ति प्रदान की है। मंत्रिमण्डल सचिवालय, बिहार सरकार में विशेष सचिव एवं वरिष्ठ कवि डा उपेंद्रनाथ पाण्डेय ने कहा कि कविता कविता अहंकार का विसर्जन है। इसकी गति वक्राकार है। इसमें उपलब्धि के लिए बड़ी साधना चाहिए। लोकार्पित पुस्तक की कवयित्री ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, खत्री सभा बिहार के अध्यक्ष अनंत अरोड़ा, प्रेम खन्ना, डा जनार्दन यादव तथा जौली श्रीवास्तव ने भी अपने विचार व्यक्त किए।कवि सम्मेलन का आरंभ कवयित्री कामिनी श्रीवास्तव के काव्य-पाठ से हुआ। उन्होंने अपनी रचना ‘हमारी गूँगी’ का पाठ करते हुए कहा कि “शादी हो चुकी थी उसकी/ दो बेटे भी थे/ पति के मरने के बाद/ ससुराल वाले छोड़ गए थे उसे”। सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र’करुणेश’ का कहना था कि “ख़ुदा का शुक्र जमीं ने है उछाला मुझको/ ख़ुदा का शुक्र आसमां ने संभाला मुझको/ ख़ुदा का शुक्र जी गया मैन पी गया छकके / ये किसने भर के दिया ज़हर का प्याला मुझको”। डा उपेन्द्र नाथ पाण्डेय ने कहा – “प्रेम के पाँव आज छाले पड़े/ अश्रुजल से इन्हें अब भींगों डालिए/ चलते चलते हमारे चरण थक गए एक पाल छांव अपना भोग लीजिए।”डाL शंकर प्रसाद ने बदलते समाज पर चिता व्यक्त करते हुए कहा कि “चली आंधियाँ नफ़रतों की ये कैसी कि घर भी ग़रीबों के जलने लगे हैं”। कमला प्रसाद ने कहा – “ रास्ता लम्बा भले हो, किन्तु चलना चाहिए/ धूप काफ़ी तेज हो, फिर भी निकलना चाहिए।”वरिष्ठ कवि प्रो इंद्रकांत झा, बच्चा ठाकुर, ब्रह्मानंद पाण्डेय, कुमार अनुपम, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, डा सत्येंद्र सुमन, शमा कौसर ‘शमा’,मोईन गिरीडीहवी, डा आर प्रवेश, डा वीयंय कुमार विष्णुपुरी, अर्जुन प्रसाद सिंह, प्रभात धवन तथा डा कुंदन लोहानी ने भी अपनी रचनाओं से कवि-सम्मेलन को सार्थकता प्रदान की। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।चंदा मिश्र, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’, प्रह्लाद वर्मा, रूचि अरोड़ा, अंजलि वर्मा, कविता श्रीवास्तव, मधुरेश नारायण, अधिवक्ता शिवानंद गिरि, प्रवीण कुमार चौधरी, कौशलेंद्र कुमार, अर्चना प्रसाद, शशि सिन्हा, कौशलेंद्र कुमार, श्री बाबू, प्रीति सुमन, सुनिता सिंह, रामाशीष ठाकुर आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे।