पटना, ६ दिसम्बर। कविता मानव-मन को मिली निसर्ग देव की अद्भुत वरदान है। यह आत्मा की सबसे प्रांजल और आनंदप्रद अभिव्यक्ति है। इसके सृजन में जो सुख है, वह कहीं अन्यत्र नहीं है। यह आत्मा से निकलती और आत्मा तक पहुँचने वाली दिव्य वस्तु है। इसकी परिधि में निखिल ब्रह्मांड है, जैसा कि कभी ‘नेपाली’ ने कहा था – “लिखता हूँ तो मेरे आगे सारा ब्रह्माण्ड विषय भर है।”यह बातें सोमवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, मैथिली और हिन्दी के लब्ध-प्रतिष्ठ कवि प्रो इंद्रकान्त झा के काव्य-संग्रह ‘अंतस की पुकार’ के लोकार्पण-समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, लोकार्पित पुस्तक में कवि ने अपनी आत्मा की उसी पुकार को समझने की चेष्टा की है और उसकी विमल अभिव्यक्ति भी दी है। समारोह का उद्घाटन करते हुए, वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सांसद रवींद्र किशोर सिन्हा ने कहा कि प्रो झा ने अपनी लोकार्पित पुस्तक की प्रत्येक कविता को प्रभु को अर्पित और संबोधित किया है। प्रत्येक रचना का आरंभ ‘प्रभु मेरे’ से होता है। पुस्तक का लोकार्पण करते हुए, मधेपुरा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो अमरनाथ सिन्हा ने कहा कि, प्रभु के माध्यम से कवि ने जीवन और जगत की तलाश की है। उन्होंने कहा कि कविता विचार से और गहन है। यह विचार से ऊपर होती है। कवि का वैदुष्य उनकी रचनाओं में प्रबल है। पटना विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो रास बिहारी सिंह ने कहा कि प्रो झा ने मैथिली साहित्य में बहुत ही मूल्यवान कार्य किया है। इन्हें बिहार के किसी विश्वविद्यालय को ‘इमेरिटस प्रोफ़ेसर’ के रूप प्रतिष्ठा देनी चाहिए। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा उपेन्द्र पाठक, प्रो बासुकी नाथ झा, प्रो राम प्रसाद चौधरी, प्रो सत्येंद्र सिंह ‘सुमन’, अधिवक्ता कमल प्रसाद आदि ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ रेणु कुमारी की वाणी-वंदना से हुआ। लोकार्पित पुस्तक के कवि प्रो इंद्रकान्त झा ने अपनी एक रचना पढ़ते हुए मानव मन की अंतर की पीड़ा व्यक्त की- “—-”। वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने अपनी ग़ज़ल की ये पंक्तियाँ पढ़ी- “जिसकी चाहत में शिद्दत में कोई पालक बिछाए तो/ आए वो मझाए दिल का कोमल कमल खिलाए तो/ टँगी टकटकी आसमान पर धरती मांग रही पानी/ उमड़ घुमड़ आए दल से दल बादल जल बरसाए तो”, पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा। सुकंठी कवयित्री आराधना प्रसाद ने कहा – “जय भारत उद्घोष किए तु चलता चल/ सच का हाथ पकड़ कर आगे बढ़ता चल” । डा शंकर प्रसाद की इन पंक्तियों को भी कि “महकती फजाएँ, मचलती हवाएँ/ इन्हें ग़म छुपाने की आदत नहीं है”, ख़ूब सराहना मिली।वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, कमला प्रसाद, राश दादा राश, शमा कौसर ‘शमा’, कुमार अनुपम, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, जय प्रकाश पुजारी, राम प्रसाद चौधरी, पुतुल प्रियंवदा, प्रियंका मिश्र, कमल किशोर प्रसाद, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, राज किशोर झा ‘वत्स’, अर्जुन प्रसाद सिंह आदि कवियों के काव्य-पाठ को भी श्रोताओं ने मनोयोग से सुना। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन डा नागेश्वर प्रसाद यादव ने किया। इस अवसर पर डा मेधाकर झा, डा प्रेम प्रकाश, रामाशीष ठाकुर, अमन वर्मा, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’, बाँके बिहारी साव, शशि चौधरी समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।