पटना, ७ दिसम्बर । भोजपुरी और हिन्दी की सुप्रतिष्ठ कवयित्री डा सुभद्रा वीरेंद्र नहीं रहीं। सोमवार की मध्य रात्रि में डेढ़ बजे उन्होंने, गुरूग्राम स्थित अपने पुत्र दिव्यांशु के आवास पर अपनी अंतिम साँस ली। वे कैंसर से पीड़ित थीं। आज दूसरे पहर ‘स्वर्गद्वार’ नोबेल इंकलेब सेक्टर २२ गुरूग्राम के शमशान घाट पर उनका अग्नि-संस्कार संपन्न हो गया। उनके ज्येष्ठ पुत्र दिव्यांशु वीरेंद्र ने मुखाग्नि दी। उनके निधन से साहित्य समाज में गहरा शोक व्याप्त है। गीति-धारा की अन्यतम स्वर-शब्द साधिका सुभद्रा जी के निधन पर, मंगलवार की संध्या, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में शोक-सभा आयोजित हुई। अपने शोकोद्गार में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि सुभद्रा जी के निधन से हमने मीरा-महादेवी की परंपरा की एक बड़ी कवयित्री को खो दिया है। हर प्रकार के क्षरण के दौर से गुजर रहे समाज में वो रागात्मक-साहित्य की एक दिव्य प्रकाश स्तम्भ थीं। अपने प्राण-स्पर्शी गीतों और मधुर स्वर से वो काव्य-मंचों की आत्मा बन जाती थीं। राष्ट्रीय काव्य-मंचों पर वो बहुधा बिहार का प्रतिनिधित्व करती रहीं। उनके हिन्दी गीत-संग्रह ‘राग-ऋचा’ और भोजपुरी गीत संग्रह ‘इचिको ना लउके’, ‘राधा गावे मल्हार’, ‘रस गंध’ और भोजपुरी ग़ज़ल संग्रह ‘तहरे नाम’ को काफ़ी प्रसिद्धि मिली। ‘रस गंध’ का लोकार्पण विगत ११ नवम्बर को साहित्य सम्मेलन में ही संपन्न हुआ था। अस्वस्थता के बावजूद भी उन्होंने एक गीत का मधुर स्वर में पाठकर श्रोताओं को मंत्र-मुग्ध कर दिया था।डा सुलभ ने कहा कि उनका स्नेहिल, सरल और तरल व्यवहार प्रत्येक सुधी व्यक्ति को स्नेह-पाश में बाँध लेता था। सिर पर आँचल और मुखारविंद पर तैरता पवित्र मुस्कान उन्हें कवयित्रियों में सबसे अलग और विशिष्ट बनाता था। उन्हें देखते ही मन में श्रद्धा के भाव उत्पन्न होते थे। उनका निधन गीति-धारा के एक मधु-दान करने वाली रस-गंगा का सूख जाने जैसा है। शोक प्रकट करने वालों में, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’, डा शिववंश पाण्डेय, राम उपदेश सिंह ‘विदेह’,आचार्य विजय गुंजन, डा अर्चना त्रिपाठी, शमा कौसर ‘शमा’, डा शालिनी पाण्डेय, डा बी एन विश्वकर्मा, डा आर प्रवेश, श्रीकांत व्यास, विपिन विप्लवी, नीरव समदर्शी, लता प्रासर, इंद्रदेव राय, कृष्णरंजन सिंह, डा भूपेन्द्र कलसी, कुमार अनुपम, डा सुलक्ष्मी कुमारी के नाम सम्मिलित हैं।