पटना, १५ दिसम्बर। संत और भक्त कवि सूरदास के साहित्य में ग्रामीण जीवन और संस्कृति की मनोरम झलक मिलती है। विद्वान लेखक डा सत्यनारायण उपाध्याय ने सूर साहित्य से उद्धरण लेकर ग्राम्य-जीवन और संस्कृति के तत्कालीन इतिहास का सुंदर साक्ष्य प्रस्तुत किया है। यह विचार बुधवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, सुप्रसिद्ध विद्वान डा सत्यनारायण उपाध्याय की पुस्तक ‘सूर साहित्य में ग्रामीण जीवन एवं संस्कृति’ का लोकार्पण करते हुए, विद्वान साहित्यकर और मधेपुरा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो अमरनाथ सिन्हा ने व्यक्त किए। प्रो सिन्हा ने कहा कि इतिहासकार कंकड़-पत्थर को तो साक्ष्य मानते हैं, पर साहित्य को इतिहास का साक्ष्य नहीं मानते। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। भारत के गौरवशाली अतीत का हमें ज्ञान ही नहीं होता, यदि हमारे साहित्य न होते। लोकार्पित पुस्तक के लेखक ने सूर साहित्य से तथ्य लेकर यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि साहित्य को भी इतिहास का साक्ष्य माना जाना चाहिए।समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, महाकवि सूरदास भारत के ग्राम्य-जीवन और संस्कृति में रचे बसे हुए हैं। अपने साहित्य में सूर ने भक्ति-भाव और समर्पण के पश्चात, ग्राम्य-सुषमा को सर्वाधिक महत्त्व का स्थान दिया है। इस अवसर पर समारोह के मुख्य अतिथि और विश्वविद्यालय सेवा आयोग के अध्यक्ष डा राजवर्द्धन आज़ाद ने, काव्य-पुस्तक ‘छंद-विन्यास’ के लिए, इंटरनेशनल बूक औफ़ रेकौर्ड्स द्वारा सम्मानित कवि-लेखक डा संजीव कुमार चौधरी को अंग-वस्त्रम देकर सम्मानित किया। डा चौधरी को इंडिया बूक औफ़ रेकौर्ड्स में भी स्थान मिला है। उन्होंने अपनी पुस्तक में, काव्य में हीं, विभिन्न छंदों का सरल विधान बताया है और अपनी स्वरचित पद्यों से उदाहरण भी प्रस्तुत किए हैं। इस कारण से यह पुस्तक विशिष्ट और अद्वितीय सिद्ध हुई है।आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, सूरदास के कथा नायक श्रीकृष्ण का संपूर्ण स्वरूप ही ग्रामीण जीवन से जुड़ा हुआ है। वे संस्कृति के महान उन्नायक हैं। उनपर केंद्रित रचनाओं में नैसर्गिक रूप से ग्राम्य-जीवन और संस्कृति के चित्रण आएँगे। पुस्तक के लेखक ने सूर साहित्य से प्रसंगों को चिन्हित कर उसे प्रस्तुत किया है। सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, डा शंकर प्रसाद, भोजपुर ज़िला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा बलिराज ठाकुर, प्रधानमंत्री डा नंदजी दूबे, डा मधु वर्मा, डा भारत भूषण पाण्डेय, डा ममता मिश्र, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा बी एन विश्वकर्मा,नाशाद औरंगाबादी, डा महेश राय, चितरंजन भारती, ब्रह्मानंद पाण्डेय, मोईन गिरीडीहवी, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, चंदा मिश्र, श्याम बिहारी प्रभाकर, डा पंकज प्रियम, जय प्रकाश पुजारी तथा बाँके बिहारी साव ने भी अपने विचार व्यक्त किए । मंच का संचालन कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। इस अवसर पर, अजय कुमार यादव, प्रो सुखित वर्मा, अमन वर्मा, अर्जुन प्रसाद सिंह, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’, शिवानंद गिरि, अमित कुमार सिंह, आनंद मोहन झा, श्रीबाबू, रवींद्र कुमार सिंह, आदि बड़ी संख्या में सुधीजन और साहित्यकार उपस्थित थे।